Saturday, October 27, 2012


'काका जी'से प्रेरणा, उनसे मिला रूझान |
एकलव्य होकर लिया,इन छक्कों का ज्ञान |
इन छक्कों का ज्ञान, छंद से इन्हें न तोलें,
मिले नहीं आनन्द, तभी कुछ बढकर बोलें |
कहे'राजकविराय' फाड़ कर दुख की छाती,
सीधे स्वर्ग सदेह, हास्य कविता पंहुचाती |


मिले सतत आनन्द,'हास्य का यही ज्ञान है |
'काव्यकला' या 'छंददृष्टि' का नही ज्ञान है |
कहे 'राजकविराय',  छंद के मानक जितने,
'हास्य-व्यंग्य'में जान डालने, त्यागे सबने |