Friday, October 14, 2011

stuti


       स्तुति
               -डा.राज सक्सेना
वह सुरापात्र दो दयानिधे,
बिन मांगे पूरा भर जाए |
है आठ लार्ज कोटा अपना,
बिन मांगे पूरा कर जाए |

प्रातः उठते ही हैम चिकन,
फ्राइड फिश से हो ब्रेकफास्ट |
हो मट्न लंच में हे स्वामी,
मैं बटरचिकन से करूं लास्ट |

मिलजाय डिनर बिरयानी का,
संग चिकनसूप भरकर आए |
है आठ लार्ज कोटा अपना,
बिन मांगे पूरा कर जाए |


हो आमलेट से दिवस शुरू,
तीखे कैचप के साथ प्रभो |
फ्राईफिश,सींक कवाब मिले,
जब करूं लंच मैं महाप्रभो |

बस मुर्गतन्दूरी,मटन करी,
नित नैक्स्टडिनर लेकर आए |
है आठ लार्ज कोटा अपना,
बिन मांगे पूरा कर जाए |

कीमे से भरा पराठा भी,
मक्खन केसाथ मिले स्वामी |
हर लंचडिनर में नानवैज्-,
की तीनडिशेज कर दे स्वामी |

फ्राइड लीवर और किडनी भी,
दारू संग चखने तर आए |
है आठ लार्ज कोटा अपना,
बिन मांगे पूरा कर जाए |

हो जाय भले कैंसर फिर भी,
मैं नहीं डरूं वह शक्ति  दे |
अगड़्म्-बगड़म बस नानवैज,
दे दे मुझको मत भक्ति दे |

हो मुर्ग मुसल्ल्म अंत समय,
उदरस्थ करे और तर जाए |
अंतिम घड़ियों में आठ लार्ज ,
कवि'राज'पिये और मरजाए |
वह सुरापात्र दो दयानिधे,
बिन मांगे पूरा भर जाए |
     -धनवर्षा,खटीमा-२६२३०८

Sunday, October 2, 2011

kundali anna hazaare

गांधी जी के  देश में, उठने लगे   सवाल |
अनशन अन्ना ने किया,जलने लगे दलाल |
जलने लगे दलाल,  अजब आरोप लगाते,
अनशन पर ये  गांधी का अधिकार  बताते |
कहे'राज'कविराय, न कोई हल  बतलाता,
घोटालों पर हर दलाल,चुप क्यों हो  जाता |
         -०-
ब्लैक मनी स्कैम पर, कर लेते मुख बन्द |
मालमलीदा खा रहे, इस युग के  जयचंद |
इस युग के जयचंद,ग्राण्ट लाखों में पाते ,
कागज में कल्याण दिखा कर खुद खा जाते  |
कहे'राजकविराय',बांट कर पैसा   खाते,
जो आन्दोलन करो सभी को फ्राड बताते |
         -०-