चलाते हैं हम डण्डे
-डा.राज सक्सेना
देवों के आयोग ने, रख बल, बुद्धि, विवेक |
सभी दलों से यह कहा,छांटो इनमे एक |
दलित बताकर हाथी ने तब बल को मांगा ,
शातिर पंजा छीन स्वंय,बुद्धि ले भागा |
रहना पीछे 'राज', कमल ने कभी न छोड़ा,
मत्थे पड़ा विवेक , विवश हो उसने ओढा |
इस विवेक से हो गई,बी जे पी कन्फ्यूज |
सही वक्त पर मुददआ,कभी न करती यूज |
कभी न करती यूज,धूल में लट्ठ चलाते,
नहीं वरुण को, राहुल के पीछे दौड़ाते |
कहे'राजकवि'वोट,अधिकतम खिंचकर आते,
पिटता दिग्गी रोज,चित्त राहुल हो जाते |
देख मिला इनको बहुत,गई स पा बौराय |
संविधानजी से कहा,हमपर क्यों अन्याय |
रखा न शेष बचाय, हमारी जड़ें न काटो,
मांग हमारी मुस्लिम को आरक्षण बांटो |
कहे 'राज कवि', संविधान तब रोकर बोला,
वोटतुला से अलग,कभी क्या मुझको तोला |
तोला है तो क्या हुआ,करते यह सब अन्य |
लुंज-पुंज तुमको बना,नेता सब हैं धन्य |
लोकपाल पर प्रश्न करो , न चुप्पी तोड़ें,
सभी जांच के प्रश्न,स्वंय अपने पर छोड़ें |
'राज'लोकपाल ये बिनारीढ इसलिये बनाएं ,
कर जाएं सब हड़प,सजा बिल्कुल न पाएं|
माल-माल उदरस्थ कर , मट्ठा देंगे छोड़ |
बन कर पक्के सैकुलर, उसमें धर्म निचोड़ |
उसमें धर्म निचोड़,जाति का डालें पंगा ,
नहीं अगर कुछ मिले,करादें मजहब दंगा |
कहे'राज कवि' ,पुलिसबलों के चलवा डण्डे,
बांटे हम अनुदान,जीतने के यह सब फण्डे |
-धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,
खटीमा- 262308(उ.ख.)मो०-09410718777
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