राजनैतिक दोहे
-डा.राजसक्सेना
आज़ादी है मुल्क में,करता रह विस्फोट |
सत्ता को लाशें नहीं,गिनने हैं कुछ वोट |
कब्रगाह में हो गया,पूर्ण नगर तब्दील |
नेता मंचों पर खड़े, देते रहे दलील |
हर हत्या के बाद वे, ला कठोर प्रस्ताव |
राजधर्म का कर रहे,कितना सही निभाव |
आतंकी विस्फोट का, इतना हुआ प्रभाव |
वीर बनें, धीरज धरें, देते रहे सुझाव |
हिंसा,हत्या,सिसकियां,आंसू और आतंक |
सब का यही भविष्य है,राजा हो या रंक |
गोली,कर्फ्यू,लाठियां और दंगों के दृष्य |
लोकतंत्र का हो गया,निश्चित यही भविष्य |
हिंसा,भय,आतंक से,दिवस न खाली जाय |
चाकू,फरसे,खुखरियां, बने शांति पर्याय |
अपनी रक्षा खुद करें, कहते नेता लोग |
हिंसक होती जा रही,इस युग की हर नस्ल |
सौदे, साज़िश-सैकड़ों, धमकी और मलाल |
देकर अपने देश को, सत्ता रहे संभाल |
जन विकास के खेल को,देखें होकर मौन |
अंधों को टी.वी.मिलें, बहरे पायें फोन |
आज़ादी के बाद से, ऐसा हुआ विकास |
पहले जो था पास में, नहीं रहा वह पास |
बौनों ने जब से रचा, अपना संविधान |
सत्ता चेरी हो गई, चाकर हुआ विधान |
No comments:
Post a Comment