Tuesday, September 25, 2012

haasya vyangya ke rang- 'raaj kavi' ke sang.



haasya vyangya ke rang-
'raaj kavi' ke sang.  
                         -raaj saksena
      1.    शर्म न आती
                  -राज सक्सेना
जन-पथ ने भर दी हवा, मनमोहन हो क्रुद्ध |
दिग्गी-मुख से लड़ रहे, सभी दलों से युद्ध |
सभी दलों से युद्ध , पुलिसिया लट्ठ बजाते,
करें कायरी - काम, उसे पर उचित  बताते |
कहे 'राज कविराय', अरे 'डायर' के नाती,
कठपुतली बन पुलिस,तुझे क्या शर्म न आती |

भ्रष्टों की सरकार क्यों , लाए   काले  नोट |
राष्ट्र्-कार्य में लग रहा, दुष्ट-जनों को  खोट |
कुछ भी करलो मगर तनिक यह शर्म न खाती,
न्यायालय के हुक्म तलक, यह पी-पी जाती |
कहे 'राज कविराय',माल सब जो भी खाया,
कैसे  वापस लाएं,  इन्हीं ने  जमा कराया |

जब तक हम सरकार हैं, नहीं लाएंगे नोट |
हम हैं पक्के  बे-शरम, जितनी मारो चोट |
जितनी मारो चोट,  नई  नित हांके  जांए,
हिन्दू-मुस्लिम कार्ड,नवल नित खोले जाएं |
कहे 'राज कविराय',चुना तो कष्ट  उठाओ,
हम सब खाएं माल, आप सब लातें खाओ |

कठपुतली पी एम रखा, धागे रख कर हाथ |
पी एम ओ में चल रहा,दस जनपथ का हाथ |
दस जनपत का हाथ, दुष्टता की हद कर दी,
राष्ट्र-शत्रु की तरह, चढाई जन पर  कर  दी |
कहे 'राज कविराय', राष्ट्र-हित रखकर आगे,
राष्ट्र-प्रेम रख प्रथम, तोड़ पी एम सब तागे |


 
               2.  तमाशा होली का
                         -राज सक्सेना
संसद मे घुस, देखें चलकर, यार  तमाशा होली का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |

राज-नीति  की  दुल्हन  देखो, कैसे  रंग दिखाए ,
भेंट चढा कर एक सत्र की, जे पी सी बन  पाए |
मजबूरी की टेर लगा कर,  फेवर - जन का  चाहे,
सारे साक्ष्य  हटा ले राजा,  तब  छापे  डलवाए |

छिनरा रक्षक चुना गया है,प्रजा-तंत्र की  डोली का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |

कलमाडी की 'कला' छिपा कर, वर्षों  दिया  सहारा |
इतने दिन दे दिये, हटा दे वह  रिकार्ड ही  सारा |
किन्तु बोलता पाप स्वंय ही, यह इतिहास रहा है,
नहीं ढूंढने पर फिर मिलता, रक्षक कोई  किनारा |

एटीएस भी दुश्मन बनकर, खेले खेल ठिठोली का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |

बुलेटप्रूफ में घुस कर अपने ,' मन-मोहन'  बेचारे |
लाचारी का राग अलापें, गठ - बन्धन के   द्वारे |
कोल-गेट घोटाला खुद ही, किया मन्त्रि-पद रहते,
अब भी इस पर अड़े हुए हैं, हम पवित्र है  सारे |

घोटाले करके भी रखते,   कब्जा 'पीएम खोली' का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |

       3. जनता भी निराली है
                      -राज सक्सेना
इस दौर-ए-फ़्जीहत की जनता भी निराली है |
चुनती है जिसे ख़ुद ही, देती  उसे  गाली है |
नेता तो जन्म से ही,मंगतों की नस्ल का है,
कल वोट मांगता था,  अब नोट सवाली है |
जाली का हाल ये है,  अब कौन पूछता है,
असली है नोट,या फ़िर हरचीज़ सा जाली है |
खेतों को खा रही हैं, बाढें ही आज जमकर,
बाकी बचे तो खाऊं,  ताके  हुए माली है |
नौकर का पेट हदसे,अब बढ गया है इतना,
वेतन तो हक है उसका,रिश्वत भी हलाली है |
कर के नकल से बी.ए.,है छात्रदल का नेता,
छोटी मिरच सरीखा, हद दरजा  बवाली है |
खाता है कसम सबसे,मैं तो नहीं पीता हूं,
भेजो जो शाम बोतल,मिलती सुबह खाली है |
एक सुन्दरी को लेकर,दौरे पे आया अफ्सर,
लाया है किराए पर, कहता है कि साली है |
हर एक चलाता है, हाथों को 'राज'अपने,
पड़ जाय तो थप्पड़ है,बज जाय तो ताली है |


        4.  कुर्सी के रंग
                -राज सक्सेना
उतरा हुआ था चेहरा,बद-रंग जंग खाया |
जब से चुनाव जीता, चेहरे पे रंग आया |
सूरज नहीं निकलता,मिलने को लोग आते,
मंहगी मिठाई के संग,डिब्बों में नोट लाते |
खीसें निपोर कर वे, कर जोड़ हिनहिनाते,
परिचय नहीं है तोभी,चरणों को कर लगाते |
चपरासियों की सेना,घर पर लगी हुई है,
आदेश के लिए वह,तन कर खड़ी हुई है |
बेबात ही वह जबतब,कुछ ताव खा रहे हैं,
चलता है हुक्म उनका,सबको दिखा रहे हैं |
कुछ चेलियां भी आकर,तीरे नजर चलाएं,
नैनों में है निमंत्रण,खुलकर उन्हें दिखाएं |
सत्ता के साथ रहना,फितरत है मानते हैं,
लालच कमाई का है,इतना तो जानते हैं |
इतने निशाचरों में किसकिस से ये लड़ेंगे,
आखिर कहींतो आकर ये धमसे गिर पड़ेंगे |
अब 'राज'तुम बताओ कैसे बचाएं इनको,
काजल की कोठरी में,रहना सिखाएं इनको |


           5.  तीक्ष्ण वाण हैं
                   -राज सक्सेना
बनते हैं रक्षक जनता के,पर दुर्गुण की अतुल खान हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |

इच्छाओं के महा-समर में, बुरा हाल है अब प्रबुद्ध का |
संसद का पावन मंदिर अब,बनता जाता क्षेत्र युद्ध का |
स्वप्नलोक सी लोकसभा को,बदल दिया मछलीमण्डी में,
करते शोर्-शराबा खुद पर, बता  रहे आचरण शुद्ध सा |

घोटालों के प्रबल प्रशिक्षक, कमीशनों के अतल ज्ञान हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |

छोड़ दिया है सभी पुरातन,अधुनातन के अन्धे युग में |
हाथ स्वार्थ के,खेल रहे हैं, यन्त्र सरीखे चलते  युग में |
मर्यादा का ढेर लगा कर, दिया पलीता  उसमें सब ने,
शकुनि के ले पांसे हमसे, खेल रहे हैं अब के युग में |

चक्र-व्यूह में हमें फंसाकर,  दुर्योधन से  पहलवान हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |

हर तन एक कुंवारी मां है, जारज जिसने जने अनेकों |
कुन्ती जैसे पड़े द्वंद में , जिन द्वंदों में   द्वंद  अनेकों |
हुई व्यवस्था ध्रतराष्ट्रों की, कौन पीसता कौन खा रहा,
हर कुर्सी दुःशासन जैसी, चीर - हरण में लगे अनेकों |

फितरत से कैसे हट जाएं, बददिमाग हैं, बेइमान  हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |


     

             6. सभी भ्रष्ट है?
              -राज सक्सेना
देखा जिसकी दुम उठा, लगा वही मादीन |
सभी भ्रष्टतम लग  रहे, करें जुर्म संगीन |
करें जुर्म संगीन,  बताते भ्रष्ट  और को,
खा जाते हैं स्वंय,दबा कर खुले तौर को |
कहे'राज कविराय',मौन पीएम को भाए,
कठपुतली नेतृत्व, स्वंय नाचे न  गाए |


लल्लू सा नाटक करे, चला रहा सरकार |
इस गठबन्धन धर्म को,कोटि-२ धिक्कार |
कोटि-कोटि धिक्कार, अगर ईमामदार हो,
मारो लातें चार, जहां पर  अनाचार  हो |
कहे'राज कविराय',मगर तुम डटे रहोगे,
बनकर बगुला भगत, देश को चरे रहोगे |


आतंकी आतंक का, फैलाता निज  जाल |
हो कोई भी नष्ट पर, तुमको कहां मलाल |
तुमको कहां मलाल, चिपक सत्ता से बैठे,
करें  विरोधी  नष्ट , सूत्र हैं अपने  ऐसे |
कहे'राजकविराय',स्वार्थ से निकलो भय्या,
अन्ना जी से बड़ा, नहीं रह गया  रुपय्या |


लालच से होता पतन, लालच बुरी बलाय |
जितना भी रक्खो कमा सभी यहीं रह जाय |
सभी यहीं रह जाय, नीति अन्ना की करदो,
रिश्वत का हर माल, मालखाने में  धर दो |
कहे'राज कविराय, बहुत  संतोष  मिलेगा |
जनता दे हर मान, बहुत दिन राज चलेगा |




             7. अन्ना
              -राज सक्सेना
अन्ना जी के सामने, साबित हुए निखद्द |
लम्बी-लम्बी हांक कर, बने हुए थे सिद्ध |
बने हुए थे सिद्ध, थूक कर  चाट रहे हैं,
ओमपुरी और किरन मैम को डांट रहे हैं |
कहे'राज कविराय'नयनसुख अब तो जागो,
जाग गया है देश, सुनो लम्बी मत हांको |

रालेगन ने फिर किया, गांधी -दांव प्रसिद्ध,
'नवगांधी'पैदा हुआ, किया 'सिद्ध'ने सिद्ध |
किया  सिद्ध ने सिद्ध, महा-भारत  दोहराई,
अर्जुन बन कर लड़े,  सही औकात दिखाई |
कहे'राज कविराय', मीडिया कृष्ण सरीखा,
सिर्फ दिखाया सत्य, लगाया  नहीं पलीता |

लीला के मैदान में, 'राम-लला'   सा  युद्ध,
ताने सिर जनता खड़ी,भ्रष्ट-जनों से  क्रुद्ध |
भ्रष्ट-जनों से क्रुद्ध, चाल से  चेहरे  काटे,
खुद ही पीने पड़े, जहर  जितने भी बांटे |
कहे 'राज कविराय', मनीष, दिग्गी  दुर्भागे,
पड़े चोर पर मोर, युद्ध से छिप कर भागे |




   8. नेता चुरा के खा गया
                -राज सक्सेना
गलती करेगा और फिर, घूरेगा और को |
क्या हो गया इन्सानियत के अब के दौर को |
हमने चुना देगा हमें, कुछ दिन तो रोटियां,
नेता चुरा के खा गया, हम सब के कौर को |
टीचर की ज़ात देखिए, शिष्यों से पी शराब,
शिष्या से दुष्ट चाहता, कुछ मन के और को |
डेटिंग़  पे  जा  रही  हैं, दादी की उम्र है-,
घुन लग गया है दोस्त, जवानों के तौर को |
पीएस के साथ व्यस्तता फ्रीडम है किस कदर,
मैडम से घर में व्यस्तता, करने दो और को |
नन्ही सी उम्र है मगर, दो-तीन फ्लर्ट कर,
दिल्ली में हुस्न बांट कर, चल दी  लहौर को |
'लिव इन रिलेशनों'से बढती है शान या रब,
फन्दे में शादियों के,  फंसने दो   और  को |
शादी बिना हों बच्चे, स्टेटस  है  आज-कल,
'काज़ी'बने हो'राज'क्यों,चलने दो दौर  को |




     9.फोन करा दो
            -राज सक्सेना
एक मोड़ पर अटक गई है |
सही राह  से भटक गई है |
मैंने जम कर  जोर लगाया,
फाइल  मेरी  अटक गई है |
चमचे जी अब इसे  उठादो,
मंत्री जी से  फोन  करादो |

बढकर आगे आओ कन्हैया |
अटक  गई दफ्तर में नैया |
चाय तलक को तरसे  बाबू,
कृपा करो,छल-छंद करैया |
उजड़ा दफ्तर इसे बसा  दो,
मंत्री जी से  फोन  करादो |

पागल अफसर आया सनकी |
दफतर में कर दी है  कड़की |
ना  खाता , ना खाने देता,
दफतर की ये दुरगति करदी |
जीवन सबका आओ बचादो,
मंत्री जी  से  फोन  करादो |

मुर्गियां मरोड़ी, अण्डा तोड़ा |
हमको नहीं, कहीं का छोड़ा |
सारे  काम  स्वंय करता है,
'नेट वर्क' दफतर का  तोड़ा |
दस्तूरी  और रस्म  बचादो |
मंत्री जी से  फोन  करादो |

अगर नहीं था अपने बसमें |
पी कर क्युं खाईं थीं कसमें |
दूर पटककर इस अफसर को,
जारी  रखो  पुरानी   रस्में |
फौरन  तड़ीपार  करवा  दो |
मंत्री जी से  फोन  करादो |

अगर नहीं यह हुआ प्रियेवर |
रुतबा घटे, निकल जाए डर |
तड़ी-पार  कर दिया इसे तो,
छा जाओगे फिर से सब पर |
सब की डूबी  साख  बचादो,
मंत्री जी से  फोन  करादो |




 10.   हज़ल*बन गई
               -राज सक्सेना
पिटे शेर फोड़े, हज़ल बन गई है |
बंधे बन्द तोड़े, ह्ज़ल बन गई है |

वो कुछ चुटकुले पापुलर जो हुए थे,
वही सब झिंझोड़े,हज़ल बन गई है |

इधर से उठाए , उधर  से  बटोरे,
रखे और निचोड़े,हज़ल बन गई है |

चुरा पंक्तियां ,  गैरशायर की रखदीं,
बिनाकुछ भी जोड़े,हज़ल बन गई है |

शायर बने वो गज़लगीत पर जब,
चलाए हथौड़े, हज़ल  बन  गई है  |

रखो साफसुथरी,'हज़ल' कह रहे हो,
कहें सब छिछोड़े,हज़ल बन गई  है |

कहां तक करेगा, हज़ल 'राज' लम्बी,
यहीं रुक भगोड़े, हज़ल बन गई  है  |

*हज़ल-हास्य गज़ल




       11.नेता दिखाए चलके
                     -राज सक्सेना
यदि सत्य की डगर पर, नेता दिखाए चल के |
बाकी बचे जो बरतन, बिक जाएं सारे घर के |
जनता के बीच रहना, यह गांठ  बांध  लेना,
हिस्सा तभी मिलेगा, छीनोगे   आगे बढ के |
आगे कदम बढे तो, ये मुड़ के   देख लेना,
न लटक रहा हो कोई,तेरी अपनी दुम पकड़के |
नेता-गिरी में अबतक,काटा जो माल जमकर,
छापा पड़े न कोई, सैटिंग   रहे ये  जम के |
गैरों की बीवियों पर, नजरें  जमाने   वाले,
किसी गैर की पहुंच तो,अन्दर न तेरे घर के |
है चांद पूरा लेकिन, दिखता है तुझको आधा,
पूरा जो देखना है, तो देख सर पे  चढ के |
आ जाय जो पकड़ में, उस से ही छीन लेना,
कपड़ उतार उसके,  देखो   तमाशे बढ के |
यह क्या गज़ब हुआ है,पत्नी के साथ 'वो' है,
ऐ 'राज' भाग ले बस, लेकिन अरे सभल के |


      12. नेता बिचारा
यह नेता बिचारा कहां जा रहा है |
कुर्सी की खातिर मरा जा रहा है |
लिए जीतने के ,बिनबुलाए किसीके,
सभी आयोजनों में घुसा जा रहा है |
मजारों पे जाता, ये चादर चढाता,
सिज़्दों पे सिज़दे किए जा रहा है |                
बताया है शायद, नजूमी ने इसको,
गधोंको जलेबी, खिला आ रहा है |
कहा है किसी नेतो गोबर बदन पर,
रगड़ कर नहाने, चला जा रहा है |
मगर इससे कुछभी,न हासिल रहेगा,
वोटर फिसल कर,भगा जा रहा है |
किया 'राज' वादा, जो नाले का पहले,
वो खाई बना , सामने आ रहा है |




            13. देखा करो
घर से कालेज आती-जाती, लड़कियां देखा करो |
देह् को जम कर दिखाती, झलकियां देखा करो |
है जवानी चार दिन की,नैन-सुख लो चार दिन,
मल्लिका सहरावतों सी,  तितलियां देखा करो |
जब कभी मन में उठे,  देखें चलो बाकी बचा,
पूल में खुल कर नहाती, मस्तियां  देखा करो |
देखना चाहो महन्तों की,  गज़ब  अय्याशियां,
रास रच गंगा नहाती,   चेलियां   देखा करो |
हो पुराने रूप का,  जलवा  तुम्हे  जो देखना,
वाक पर सजधज के आती, दादियां देखा करो |
किस तरह बासीकढी में रह के उठता है उबाल,
'हाट पिक्चर' हाल जातीं, हस्तियां  देखा करो |
अपनी पत्नी हूर हो,उसमें भला अब क्या नया,
कर बहाने 'राज' सबकी, पत्नियां देखा  करो |



      14.  जमकर भरा है चारा
नेता का पेट देखो, जमकर भरा  है चारा |
भारत में हाय कितना,भूखा है ये बिचारा |
पहले तो खारहा था,भारतका अन्न छिपकर,
पूरा नहीं पड़ा तो, चट कर गया है चारा |
सेवा में लोकजन की,कितना थका है देखो,
मालिश के वास्ते  वह, बैंकाक है बिचारा |
भारत की दूर   करने, बे-रोजगारियों  को,
थाई की सैक्स-मण्डी,  छाने फिरे है सारा |
कितनी फिकर है देखो,भारतके वित्त की भी,
कर्जा लिया है सबसे, बांटेगे मुल्क प्यारा |
कलतक मैं खींचता था,चूना लगा के ठेली,
अब तीन कोल माइन, बापू रखे  हमारा |
गद्दी पे जब तलक है, बनता है शेर जैसा,
कुर्सी से जब हटेगा,  चूहा  बने  बिचारा |
उठ 'राज' आज इनको,सच्चा-सबक सिखाएं,
वरना ये बेच  देंगे, कौड़ी  में देश  सारा |




              15. आज का भगवान
आज  का  भगवान  पैसा,  और सब है फालतू |          
जिस तरह भी हो कमाले,रख यही बस ख्याल तू |
दूसरे के माल पर रखकर नज़र,ताकता रह हर घड़ी,
जब मिले मौका हड़प ले, बे-झिझक हर माल तू |
ये है जनता, ये तेरी जागीर है, अब हर  घड़ी-,
खून पीकर, मांस खा, और खींचले सब खाल तू |
जब विरोधी सर उठाएं,  उनके सर को   तोड़ने,
चार - मुस्टण्डे  हमेशा,  अपने घर में पाल तू |
कोई  नेतानी  मिले जब, बे-सहारा    घूमती,-
बेझिझक अपने हरम में,  बिन-बियाहे डाल तू |
कुछ बरस नेता-गिरी के,  फिर न पूछेगा  कोई,
उन दिनों में काम आए, इतना कमा ले माल तू |
'राज' इतने पर भी पूरा, भर सके  न पेट तो,
मन्दिरों  में  जा  चुरा ले,  जेवरों का थाल तू |



     16.        नेता
नसल है बे-शरम नेता, कभी भी कम नहीं होता |
विरोधी तोप भी दागें,   असर इस पर नहीं होता |
अमर एक बेल होती है, ये नेता उस नसल का है,
तना काटो कि जड़ काटो, कहीं से कम नहीं होता |
इलेक्शन में कसम खाए, कि पैसा खा नहीं सकता,
मगर छापा जो डालो तो, अरब से कम नहीं होता |
ये बे-गम है,मजे की नींद लेता,रात भर जग कर,
सिवा  कुर्सी  के  इसको और कोई गम नहीं होता |
ये नेता रोज वादे कर, मुकर जाता है पल भर में,
बहाने लाद कर हम पर, कभी हम-दम नहीं होता |
ये झिड़की'राज'की खाता,मगर बस दांत दिखलाता,
कभी वोटर की सेवा को ,   इसे टाइम नहीं होता |




              17. सुन पाएंगे क्या ?
लीडराने क़ौम, कड़वे सच को सुन पाएंगे क्या ?
कुछ दिनों के वास्ते, सत्ता से हट जाएंगे क्या ?
आज जन की मांग है बस एक अन्ना लोकपाल,
है मनोबल क्या तुम्हारा,उसको ला पाएंगे क्या?
वोट के लालच में तुमने,कीं हदें सब पार अब,
देश 'कब्रिस्तान' हो जाए,तो फिर खाएंगे क्या ?
बेच डाला देश को,  बस चन्द टुकडों के लिए,
अब विदेशी हाथ में, सत्ता थमा  जाएंगे क्या ?
नस्ल-ए-नौ पूछेगी तुमसे क्यों हुई यह दुर्दशा,
अपने बारे में सही, उसको बता  पाएंगे क्या ?
है जरूरत देश को, मजबूत एक किरदार की,
छोड़कर ये पिलपिलापन,सख्त बनजाएंगे क्या ?
अब शिवा-राणा सरीखा, त्याग मांगे देश ये,
देशहित की भावना,निजदिल में लेआएंगे क्या ?
इस क़दर इतनी मुहब्बत,कुर्सियों से क्यों हुई,
देश की जनता को इसका'राज'बतलाएंगे क्या ?

             
             
             

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