Friday, March 8, 2013

दुश्मने-जां


खा लिया है देश पूरा-
पर खड़े निर्दोष से |
व्यक्तित्व जैसे हो बड़ा-
हाथी सरीखे दोष से,|
सबसे बढ कर दुश्मने-जां
हो गया है दोस्त ही,
हमने जिसको चुन के-
भेजा था,बड़े ही जोश से |
जब कभी मांगा है उससे-
चल दिया सपने दिखा,
कितना परिवर्तन हुआ-
सत्ता में उस मदहोश से |
ले खुदा का नाम भूखे-
पेट ही सोया  अवाम ,
मस्त है सरकार भी-
जनता के इस संतोष से |
दर्द-पीड़ा से नही खुल-
पा रहे है  होंठ  तो ,
धीरे-धीरे रंग भरता-
जा रहा , आक्रोश  से |
फट उठेगा एक दिन-
ज्वालामुखी ये सब्र का,
हर तरफ दिखने लगें है-
'राज' सब खामोश से |


तिकड़म प्रसाद 'तूफान' हूं मै,
तिकड़म इस बार चलाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार  बनाऊंगा |

छत पर गेहूं की फसल लगा,
सड़कों पर रबर  बिछाऊंगा |
बिनकाम मिले सब को खाना,
लंगर सब जगह लगाऊंगा |

बोतल इंगलिश या देसी की,
कौड़ी-कौड़ी बिकवा  दूंगा  |
घर-घर में कच्ची दारू के,
मैं लघुउद्योग लगा  दूंगा  |

जनता पी-पी कर मस्त रहे,
मस्ती के दौर  चलाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार  बनाऊंगा |

बच्चे छः हों  तो शिरोमणी,
नौ पर मैं, पद्मश्री  दूंगा |
भूषण बारह और पन्द्रह पर,
मैं पद्म विभूषण कर दूंगा |

जो बीस जने उर्वर जननी,
'राबड़ी रत्न' घोषित  होगी |
इन संतानों की शिक्षा-दीक्षा,
सब शासन से पोषित होगी |

सब युगल करें बस काम यही,
ऐसे टानिक , पिलवाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार  बनाऊंगा |

टीचर विद्यालय में जाकर,
जब मर्जी, छात्र पढाएंगे |
अनिवार्य बने अभिवावक जी,
बच्चे ट्युशन पढवाएंगे |

पढने लिखने में क्या रक्खा,
बिन पढे काम दिलवाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार  बनाऊंगा |

कालेज में नकल खुली होगी,
मैं ऐसे नियम बना  दूंगा |
जो नकलव्यवस्था करे भंग,
वह कालेज बन्द करा दूंगा |

जितने मेरे चेले चप्पड़्,
उन सब के गैंग बना दूंगा |
डाके डालें,और ऐश करें,
ऐसे कुछ नियम बना दूंगा |

हर जगह चले नेताओं की,
मर्जी उनकी चलवाउंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार  बनाऊंगा |

डाक्टर को छूट मिलेगी यह,
घर से पेशेण्ट पकड़ लाए |
खांसी-जुकाम का हो रोगी,
तब भी आपरेशन करवाए |

डाक्टरसरकारी को छूट मिले,
ड्यूटी पर आए ना आए |
ज्वाइन करते ही रिश्वत ले,
दो नर्सिंग होम बना आए |

सौ मरें, करा जिससे इलाज,
सी.एम.ओ.उसे बनाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार  बनाऊंगा |

रिश्वत को नियम बनाकरके,
दस्तूरी फीस  बना  दूंगा |
दफतर में बारह मासों का,
घोषित अवकाश करा दूंगा |

सब भरे चिलम मेरी आकर,
न भरें तो सब अन्दर होंगे |
जो चरण वन्दना नित्य करें,
सचिवालय के 'बन्दर' होंगे |

डुगडुगी और डण्डा लेकर ,
आंखों से देश चलाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार  बनाऊंगा |



नेता में क्या देखते,गन्दा और पवित्र |
सभी एक से हैं प्रिय,सबका एक चरित्र |
सबका एक चरित्र,वोट याचक बन पाते,
जीतगए तो शासक बनकर धौंस जमाते |
कहे'राजकविराय'तुम्हें नाटक दिखलाते,
आपस में ये बांट,सभी मक्खन खा जाते |

नेता - नेता एक हैं, दल चाहे जो होय |
 ध्येयएक है मालका सब मिलजाए मोय |
सब मिलजाए मोय,यहीं झगड़ा हो जाता,
एक ताकता और दूसरा माल बनाता |
कहे 'राजकविराय' निकट से देखो जाकर,
हो जाओ हैरान,खोखला सब को पाकर |

तन गोरा,कपड़े धवल,मन काजल की खान |
वाणी से चीनी झरै, है विष-मय इन्सान |
है विष-मय इन्सान,वक्त पर काम न आए,
नए बहानों से नित-नित सबको टरकाए |
कहे 'राज कविराय' ठगों का दादा लगता,
अवसर पा, परिजन को पहले  ठगता |

मन में रक्खे दुष्टता, मुख पर हो-हो होय |
बिना बात हंसता मिले,समझो नेता होय |
समझो नेता होय, निकट न उसके जाना,
यदि आ जाए पास, प्रेम से दूर हटाना |
कहे'राज कविराय'निकट फिरभी आएगा,
सावधान यदि नहीं रहे तो, डंस जाएगा |

जहां वोट देखे वहीं, घुस जाए निर्द्वन्द |
सहमा-सहमा सामने,हो पीछे स्वछन्द |
हो पीछे स्वछन्द, भ्रष्ट दाऊद  सरीखा,
अन्दर से विषवृक्ष, बहुत ऊपर से मीठा |
कहे 'राजकविराय',झूठ का बड़ा पुलन्दा,
ऐसे ही गुण रखे, आज का लीडर बन्दा |

मुख फर्जी मुस्कान हो, लीडर वही महान |
पुश्तैनी जागीर जो, समझे सकल  जहान |
समझे सकल  जहान, बहू-बेटी उठ-वाले,
बिना शर्म के करे नित्य, लम्बे  घोटाले |
कहे'राज कविराय, कभी पकड़ा जब जाए,
प्रतिद्वन्दी की चाल, बेझिझक उसे बताए |

जिस धरती पर हो गया, पैदा नेता मित्र |
उस धरतीका गिरगया,समझो सकलचरित्र |
समझो सकलचरित्र,पुण्य सव मिट जाएंगे,
चोर,दुराचारी,ठग सब,आकर मिल जाएंगे |
कहे 'राज कविराय', करेगा गुण्डा-गर्दी,
रक्षा में नित तुम्हें मिलेगी खाकीवर्दी |

नेताओं का है सदा, एक मात्र यह इष्ट |
सुरसा सा धन स्वीस में,बढता रहे अभीष्ट |
बढता रहे अभीष्ट, लंगोटी जन की काटे,
खुद ही खाए माल, और खाए तो डाटे |
कहे 'राजकविराय'न चेते जनता पगली,
लेकर जूता हाथ, पूछ ले पिछ्ली-अगली |

जब से नेता के गई, कर में देश लगाम |
नीचे से ऊपर तलक,लगता भ्रष्ट निजाम |
लगता भ्रष्ट निजाम,रास्ता नजर न आए,
बार-बार,हर बार,घूम कर वह चुन जाए |
कहे 'राजकविराय' समस्या जस की तस है,
भूसा भरा दिमाग,बुद्धि जब सबकी ठस है |

नेता में मत ढूंढिए, खालिस शुद्ध चरित्र |
कई लाख में बानगी, मिलता एक पवित्र |
मिलता एक पवित्र,गजव का चालू बन्दा,
जब देखो तब मिले, मांगता सबसे चन्दा |
कहे'राज कविराय',नहीं मन मिलने देगा,
परम-मित्र को दिवस तीसरे,लड़वा  देगा |


 
अफसर भ्रष्ट भारत का,
कसर कुछ कर नहीं सकता |
मुसीबत खुद बड़ी है ये,
किसी की हर नही सकता |

नजर में चोर सब इसकी-
है रिश्वतखोर पक्का ये,
बिनारिश्वत किसी का काम
बन्दा कर नही सकता |

है इसका रौल हिटलर का-
किसी को कुछ  न समझे ये,
फकत ये कोर्ट से डरता-
किसी से डर नहीं सकता |

समझता लाट खुद को ये-
सभी को दीन प्राणी यह,
सिवा मंत्री की इज्जत के-
किसी की कर नहीं सकता |

ये चारा खा गया सारा-
मगर हिकमत से खाता है,
इसे अन्दर,नियम कानून-
कोई कर नहीं सकता |

बिना नारे लगाए ये-
किसी की सुनतो ले यारो,
जला लो तुम कई पुतले-
शरम से मर नहीं सकता |

ये डरता है तो सीएम से-
उसी के पैर  छूता है ,
वो सर पर धौल भी मारे-
तो ये कुछ कर नहीं सकता |

जो आए'राज'पी एम तो-
चरण तक झुक के रहता है,
कभी भी सामने उस के-
उठा यह सर नहीं सकता |


दिन कड़क जवानी के अपने-
लज्जा के मारे, निकल गए |
जब हमें समझ थोड़ी आई -
तब सभी सहारे,निकल गए |

करके हिम्मत,दिल किए कड़ा-
उनके  घर-द्वारे,निकल गए |
बस उसी वक्त, डैडी  उन के-
निज मूंछ, संवारे निकल गए |

हम उन्हें देख कर कांप गए -
अरमान हमारे, निकल गए |
जो उन्हें ताकते थे, पल-पल-
वो नयन हमारे,निकल गए |

हम उहा-पोह में उलझ-उलझ,
दम साध,किनारे निकल गए |
वो आ न सके,हम जा न सके-
दिन स्वर्णिम सारे,निकल गए |

कब तक रूकते,वो कर विवाह-
रो-रो ससुरारे, निकल   गए |
हम खडे कर रहे,  अश्रुपात-
मुख से सिसकारे,निकल गए |

तन से ज़िन्दा, मन से मुर्दा-
हो कर दिन सारे,निकल गए |
हम खांस रहे, चौबारे  पर -
वो ताक बिचारे,निकल गए |

वो हुए एक से पांच, उधर-
सब स्वप्न हमारे निकल गए |
बच्चों ने मामा कहा 'राज'-
तो दिन में तारे निकल गए |



मैं दुबला-पतला मुन्ना सा-
तुम मोटी धरा-धकेल प्रिया |
मैं स्कूटी तुम एनफील्ड,हम-
दोनों का क्या मेल प्रिया |
मैं हूं स्टेपनी नैनो की-
तुम सुगढ-सफारी का पहिया,
मैं चुहिया सा तुम पाव लगो-
कैसे होगा यह खेल प्रिया |

मैं हिन्द साइकिल टूटी सी-
तुम नई बुलेट हो परमप्रिया |
मैं हिन्दू सा निरपेक्ष जीव-
तुम तालिबान का धर्म प्रिया |
मै पहलवान सिंगल पसली-
तुम खली नन्दिनी लगती हो,
मैं हूं मुकेश का नील रतन-
तुम हो टुनटुन-मरहूम प्रिया |


तुम शाही पलंग सरीखी हो-
मैं चरमर करता तख्त प्रिया |
तुम भाग्यवान बंगले वाली-
मैं झुग्गी का कमबख्त प्रिया |
नीचे कालीनों के तुमने-
अपने चरणों को धरा नहीं,
तुम डनलप जैसी नरम-नरम-
मैं हूं चटाई सा सख्त प्रिया |

तुम दिल्ली की मैट्रो जैसी-
मैं पैसेन्जर पटियाला का |
तुम फिल्मों की डाटर जैसी-
मैं नौकर लंगड़े लाला का |
तुम धरती पर पग रखती हो-
वह धन्य-धन्य हो जाती है,
तुम फिल्मी मनोरमा गोल-गोल-
मैं मच्छर हूं पशु-शाला का |

तुम ब्रेड-माडर्न सूक्ष्म पकी-
मै जले हुए स्लाइस जैसा |
तुम दालमक्खनी फुल-थाली-
मैं क्वार्टर भर राइस जैसा |
मशरूम प्रिया तुम हाईब्रीड-
मैं एक सड़ा सा आलू हूं,
तुम प्राइज जैसी रोज बढो-
मैं रोज घटूं साइज जैसा |

है लुकिंग तुम्हारी जी.एम.सी-
मैं लगता चपर-कनाती हूं |
स्पीड-पोस्ट सी तुम एक्टिव-
मैं पोस्ट-कार्ड सी पाती हूं |
तुम हरियाने का हरित-फार्म-
मैं राजपुताने का मरू-थल,
तुम चिकनी हाटमिक्स जैसी-
मैं पैच-वर्क बरसाती हूं |

मैं फुटपाथी खुट्टल चाकू-
तुम चमचम करती आरी हो |
मैं पड़ा उपेक्षित कोने में-
तुम सब की बहुत दुलारी हो |
मुझ से केला तक कटे नहीं-
तुम चाप करो सब्जी-भाजी,
तुम मल्टी-परपज छुरी प्रिय-
फारेन की बनी दुधारी हो |

तुम ट्रक लगती हो टाटा का-
मैं नैनो का भी मिनी रूप |
मैं हूं अशोक की लाट अगर-
तुम शेर शाह का अन्धकूप |
तुम ताजमहल सी लगती हो-
मकबरा लगूं मै उजड़ा सा,
अकबर जैसी तुम तनी-तनी-
मैं हेमू पकड़ा हुआ भूप |

क्या जोड़ तुम्हारा मेरा है-
हम एक नहीं हो सकते हैं |
यदि साथ चलें तो हम दोनों-
हथिनी-चूहा से लगते हैं |
तुम पूर्ण पूर्णिमा सी गोरी-
मैं अमावसी अंधियारा सा,
हर एक गणित से जोड़घटा-
हम हास्यास्पद से लगते हैं |

हम एक नहीं हो सकते है-
हम एक नहीं हो सकते है |


                  सूझती तुम्हें ठिठोली
भूल जाओ कुछ देर को,आटा लकड़ी तेल |
अब बसन्त आया प्रिय,खेलें   ईलू खेल |
खेलें   ईलू खेल, चलो कुछ जश्न मनाएं,
हर चिन्ता को भूल,नैन से नैन  लड़ाएं |
कहे 'राज कविराय', रोष से पत्नी बोली,
है पैंसठ की उम्र,  सूझती तुम्हें ठिठोली |

चौंसठ के तो हैं प्रिय,क्यों बोलो तुम झूठ |
एक वर्ष की है अभी, हम दोनों को छूट |
हम दोनों को छूट, बसन्ती  पर्व मनाएं,
भूल सभी मतभेद,गले से हम लग जाएं |
कहे 'राज कविराय',आंख पत्नी ने खोली,
ईलू क्या है? हमें बताओ, हंस कर बोली |

कटरीना जब फिल्म में, खींचे लम्बी तान |
पगलाई सी ढूंढती,  एक प्रेमी  इन्सान |
एक प्रेमी  इन्सान, मिले तो गले लगाए,
धमा - चौकड़ी करे, यही   ईलू कहलाए |
कहे'राज कविराय,समझ में अब तो आया,
चल उठ चलते पार्क,हिलाले कुछ तो काया |

बोली पोते हो गए, नहीं तुम्हें है शर्म |
शीत काल में हो रहे, जून मास से गर्म |
जून मास से गर्म , पार्क में डान्स करोगे,
पड़ा जोड़ में बाल, खाट पर पड़े सड़ोगे |
सुनो'राजकविराय' हंसी फिर हंसकर बोली,
पैंसठ में भी बोल रहे, पच्चिस की बोली |

उम्र भले पैंसठ सही,दिल है अभी जवान |
इस लायक लगतीं अभी,देदें तुमपर जान |
देदें तुमपर जान,फिक्र मत कर ह्डडी की,
ईलू-ईलू करें पार्क में, आजा  जल्दी  |
कहे'राज कविराय'चलो उठकर आ जाओ,
पत्नी बोली,अरे बुढऊ, जाकर सो जाओ |




प्रेमकथा का अन्त
पप्पू गया मदरसे,
तब तीन की उमर थी |
बस्ता था एक थैला,
तख्ती भी हमसफर थी |

गज भर की एक पटटी,
लेकर के साथ आया |
छोटा सा छुई-मुई वो,
आगे गया बिठाया |

कद में बराबरी सी,
काठी में बीस होती |
दिखने में खूबसूरत,
लड़्की भी साथ बैठी |

उसने सिसकते उसको,
जब कनखियों से देखा |
सच मानिए लगी थी,
उसको वो चन्द्रलेखा |

लड़की ने अगले दिन से,
मरियम का रूप धारा |
शाला में हर मिनट पर,
नाजों से उसको पाला |

वह भी डिपेंड उस पर,
पूरा ही हो गया था |
वो हो चुकी थी उसकी,
वो उसका हो गया था |

जब पांच पास कर के,
जोड़ा छटी में  आया |
लगने लगा बदन को,
कन्या का माल खाया |

वो रोज ही तो  कोई,
अच्छी सी चीज लाती |
रेसिस में बैठ उस को,
नाजों से सब खिलाती |

जब सातवीं  में  आए,
तब दिल की टोन बदली |
लगने लगी वो उसको,
जन्नत की एक परी सी |

पहले सी टाट   पटटी,
कक्षा में अब नहीं थी |
मजनूं की  बैच आगे,
लैला की  बैक में थी |

पर इस तरह से बैठे,
दोनों को दे  दिखाई |
हर  दूसरे मिनट में,
नैनों की हो लड़ाई |

था दिन वो आठवीं का,
पप्पू ने हाथ पकड़ा |
मक्खन से जो बना था,
और चांद का था टुकड़ा |

छूते ही जिस्म थर-थर,
यूं कांपने लगा   था |
जैसे मलेरिया   का,
दौरा उसे  पड़ा था |

घबरा के  हाथ छोड़ा,
काबू में दिल को लाके |
लैला की ओर देखा,
पाया था मुस्कुराते |

आंखों में रस बढा था,
मुस्कान बढ  गई थी |
वो भी  मुहब्बतों की,
मंजिल को चढ रही थी |

ये ना-समझ का दौरा,
बस टैन्थ तक चला था |
दोनों अलग हुए  जब,
कालेज  अलग हुआ था |

घर उस का गैर बस्ती,
कुछ दूर पर  बना था |
बिन उस को रोज देखे,
ना चैन  पड़ रहा था |

पप्पू जी जा पंहुचते,
जब ठीक पांच  बजते |
लैला भी छत पे आती,
कोई  बहाना  कर के |

कुछ दिन तो सिलसिला ये,
चुपचाप  चल  गया था |
पर कुछ दिन दिनों में जाहिर,
ये सब पे  हो  गया था |

फिर एक दिन वो  आया,
बापू ने उस के  आकर |
पप्पू को  जम के ठोका,
लड़कों को साथ  लाकर |

अब ये दशा थी  उस की,
क्लीनिक में वो पड़ा था |
टांगे लटक   रही थीं,
औंधा  सिसक रहा था |

दो पौट  रख  दिए  थे,
हाजत को  नीचे ढक कर |
बिस्तर खराब  फिर भी,
वो कर रहा था अक्सर |

एक नाक में   नली थी,
पसली  में प्लास्टर  था |
पैरों  में  फट्टियां  थी,
अब  अस्पताल घर था |

वो  तीन   माह    कैसे,
बरसों  बरस  से  गुजरे |
ख्वाबों  में  ससुरा धुनता,
जागे   तो  बाप  धुनते |

कानों पे  हाथ  रख  कर,
उसने कसम   उठा  ली |
शादी  के   बाद निश्चित्,
बीबी   को  समझे साली |

अब  हाल  ये  है  उसका,
लड़की   जो  देखता  है |
छोटी  बड़ी   सभी   को,
दीदी   ही   बोलता   है |

बोला  वो  'राज' कल ये,
अन्तिम ये 'विल' करूंगा |
करना   ना प्यार   कोई,
ये ब्लड से लिख मरूंगा |

     टापते हमको दीखे
देवों के आयोग ने, रख बल,बुद्धि,विवेक |
मुख्य दलों से कहदिया, छांटो इनमें एक |
छांटो इनमें एक, लपक हाथी  बल छांटा,
शातिर पंजा छीन, स्वंय  बुद्धि ले  भागा |
कहे'राजकवि', जगे देर से कमल सरीखे,
ले कर मात्र विवेक,  टापते हम को दीखे |

इस  विवेक  से हो गई,  बीजेपी  कन्फ्यूज |
सही वक्त पर मुददआ,कभी न करती यूज |
कभी  न  करती  यूज,  धूल में लट्ठ चलाते,
पिटते दिग्गी,  चित्त  प्रिंस राहुल हो जाते |
कहे'राजकवि',वोट सभी खिंच कर आजाते,
अगर वरूण को, राहुल  के पीछे   दौड़ाते |  

मिला सभी को देखकर,  सपा गई बौराय |
संविधान से यह कहा,हमपर क्यों अन्याय |
हमपर क्यों अन्याय, हमारी   जड़ें काटते,
मुस्लिम जन-संख्या पर केवल सीट मांगते |
कहे'राजकवि',संविधान तब रो कर  बोला,
वोटतुला से अलग,कभी क्यों मुझे न तोला |

तोला है तो क्या हुआ,सब करते यह अन्य |
लुंज-पुंज तुम को बना, नेता जी हैं  धन्य |
नेता जी हैं  धन्य,लोकपाल पर चुप्पी साधे,
सभी जांच की शक्ति, स्वंय कंधों पर  लादे |
कहे'राजकवि', रीढ बिना इस लिए बनाएं,
जन को दस परसैंट, स्वंय नब्बे खा जाएं |

माल-माल उदरस्थ,मठा तुम सब को छोड़ें |
बनें सैकुलर मगर, नीति में  धर्म निचोड़ें |
ऊंच-नींच की  नीति, जाति का डालें पंगा,
ठीक वोट से पूर्व करा दें, मजहब - दंगा |
कहे'राजकवि', यही जीतने के सब फण्डे,
करना जरा विरोध, पुलिस के भांजें  डण्डे |

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