Saturday, March 30, 2013
पांच चुनावी छ्क्के
पांच चुनावी छ्क्के
- डा.राज सक्सेना
बहूगुणा ने गुण दिखा, दी होली की छींट |
अध्यक्षी को कर दिया,उसने महिला सीट |
उसने महिला सीट, सैकड़ों को दहलाया,
कर के हेरा फेर, नगर को मूर्ख बनाया |
कहे 'राजकवि',कितने सपने चूर कराए,
चीख रहे कुछ लोग, नर्क में सीधा जाए |
-०-
नियमों को उल्टा बना, उसमें लिया लपेट |
गढवाली हर सीट को, कर के उसमे सैट |
कर के उसमे सैट, पूर्ण गढवाल बचाया,
लगभग पूर्ण कुमांऊं ही आरक्षित करबाया |
कहे 'राजकवि'राजधर्म क्या खूब निभाया,
यही कुमाऊं है जिसने, सी एम बनवाया |
-०-
प्रशासनी अधिकार की, दिखी आज औकात |
बात उसी की मानते, जिसकी खाते लात |
जिसकी खाते लात, उसी का हुक्म बजाते,
नियम और कानून,ताक पर घर रख आते |
कहे 'राज कवि'सुनो,हुक्म के चपरकनाती,
नियम तोड़कर पुनः बनाते लाज न आती |
-०-
अपने हित को साधने, जन-हित देते तोड़ |
मनमानी से कर रहे, 'ला' की तोड़मरोड़ |
'ला' की तोड़ - मरोड़, अंधेरे में ले जाते,
फिर शासक से उसपर अनगिन रेप कराते |
चिलम'राज कवि'किस हदतक ये भरते हैं,
कभी-कभी तो बेशरमी की, हद करते हैं |
-०-
जिस जनता की जेब से,आता टैक्स कराल |
उस से तनखा प्राप्त कर, फूल रहे हैं गाल |
फूल रहे हैं गाल, नहीं निज कार् चलाते,
ये लीडर घर बेच, तुम्हें क्या मौज कराते |
कहे 'राज कवि'मित्र, कहो क्युं पूंछ हिलाते,
करते रहते सहन, नहीं 'कुछ' क्यों गुर्राते |
-०-
- हनुमानमंदिर,खटीमा, मो- 9410718777
Friday, March 8, 2013
दुश्मने-जां
खा लिया है देश पूरा-
पर खड़े निर्दोष से |
व्यक्तित्व जैसे हो बड़ा-
हाथी सरीखे दोष से,|
सबसे बढ कर दुश्मने-जां
हो गया है दोस्त ही,
हमने जिसको चुन के-
भेजा था,बड़े ही जोश से |
जब कभी मांगा है उससे-
चल दिया सपने दिखा,
कितना परिवर्तन हुआ-
सत्ता में उस मदहोश से |
ले खुदा का नाम भूखे-
पेट ही सोया अवाम ,
मस्त है सरकार भी-
जनता के इस संतोष से |
दर्द-पीड़ा से नही खुल-
पा रहे है होंठ तो ,
धीरे-धीरे रंग भरता-
जा रहा , आक्रोश से |
फट उठेगा एक दिन-
ज्वालामुखी ये सब्र का,
हर तरफ दिखने लगें है-
'राज' सब खामोश से |
तिकड़म प्रसाद 'तूफान' हूं मै,
तिकड़म इस बार चलाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार बनाऊंगा |
छत पर गेहूं की फसल लगा,
सड़कों पर रबर बिछाऊंगा |
बिनकाम मिले सब को खाना,
लंगर सब जगह लगाऊंगा |
बोतल इंगलिश या देसी की,
कौड़ी-कौड़ी बिकवा दूंगा |
घर-घर में कच्ची दारू के,
मैं लघुउद्योग लगा दूंगा |
जनता पी-पी कर मस्त रहे,
मस्ती के दौर चलाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार बनाऊंगा |
बच्चे छः हों तो शिरोमणी,
नौ पर मैं, पद्मश्री दूंगा |
भूषण बारह और पन्द्रह पर,
मैं पद्म विभूषण कर दूंगा |
जो बीस जने उर्वर जननी,
'राबड़ी रत्न' घोषित होगी |
इन संतानों की शिक्षा-दीक्षा,
सब शासन से पोषित होगी |
सब युगल करें बस काम यही,
ऐसे टानिक , पिलवाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार बनाऊंगा |
टीचर विद्यालय में जाकर,
जब मर्जी, छात्र पढाएंगे |
अनिवार्य बने अभिवावक जी,
बच्चे ट्युशन पढवाएंगे |
पढने लिखने में क्या रक्खा,
बिन पढे काम दिलवाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार बनाऊंगा |
कालेज में नकल खुली होगी,
मैं ऐसे नियम बना दूंगा |
जो नकलव्यवस्था करे भंग,
वह कालेज बन्द करा दूंगा |
जितने मेरे चेले चप्पड़्,
उन सब के गैंग बना दूंगा |
डाके डालें,और ऐश करें,
ऐसे कुछ नियम बना दूंगा |
हर जगह चले नेताओं की,
मर्जी उनकी चलवाउंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार बनाऊंगा |
डाक्टर को छूट मिलेगी यह,
घर से पेशेण्ट पकड़ लाए |
खांसी-जुकाम का हो रोगी,
तब भी आपरेशन करवाए |
डाक्टरसरकारी को छूट मिले,
ड्यूटी पर आए ना आए |
ज्वाइन करते ही रिश्वत ले,
दो नर्सिंग होम बना आए |
सौ मरें, करा जिससे इलाज,
सी.एम.ओ.उसे बनाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार बनाऊंगा |
रिश्वत को नियम बनाकरके,
दस्तूरी फीस बना दूंगा |
दफतर में बारह मासों का,
घोषित अवकाश करा दूंगा |
सब भरे चिलम मेरी आकर,
न भरें तो सब अन्दर होंगे |
जो चरण वन्दना नित्य करें,
सचिवालय के 'बन्दर' होंगे |
डुगडुगी और डण्डा लेकर ,
आंखों से देश चलाऊंगा |
ऐ,सुनो मुझे चुनकर भेजो,
अपनी सरकार बनाऊंगा |
नेता में क्या देखते,गन्दा और पवित्र |
सभी एक से हैं प्रिय,सबका एक चरित्र |
सबका एक चरित्र,वोट याचक बन पाते,
जीतगए तो शासक बनकर धौंस जमाते |
कहे'राजकविराय'तुम्हें नाटक दिखलाते,
आपस में ये बांट,सभी मक्खन खा जाते |
नेता - नेता एक हैं, दल चाहे जो होय |
ध्येयएक है मालका सब मिलजाए मोय |
सब मिलजाए मोय,यहीं झगड़ा हो जाता,
एक ताकता और दूसरा माल बनाता |
कहे 'राजकविराय' निकट से देखो जाकर,
हो जाओ हैरान,खोखला सब को पाकर |
तन गोरा,कपड़े धवल,मन काजल की खान |
वाणी से चीनी झरै, है विष-मय इन्सान |
है विष-मय इन्सान,वक्त पर काम न आए,
नए बहानों से नित-नित सबको टरकाए |
कहे 'राज कविराय' ठगों का दादा लगता,
अवसर पा, परिजन को पहले ठगता |
मन में रक्खे दुष्टता, मुख पर हो-हो होय |
बिना बात हंसता मिले,समझो नेता होय |
समझो नेता होय, निकट न उसके जाना,
यदि आ जाए पास, प्रेम से दूर हटाना |
कहे'राज कविराय'निकट फिरभी आएगा,
सावधान यदि नहीं रहे तो, डंस जाएगा |
जहां वोट देखे वहीं, घुस जाए निर्द्वन्द |
सहमा-सहमा सामने,हो पीछे स्वछन्द |
हो पीछे स्वछन्द, भ्रष्ट दाऊद सरीखा,
अन्दर से विषवृक्ष, बहुत ऊपर से मीठा |
कहे 'राजकविराय',झूठ का बड़ा पुलन्दा,
ऐसे ही गुण रखे, आज का लीडर बन्दा |
मुख फर्जी मुस्कान हो, लीडर वही महान |
पुश्तैनी जागीर जो, समझे सकल जहान |
समझे सकल जहान, बहू-बेटी उठ-वाले,
बिना शर्म के करे नित्य, लम्बे घोटाले |
कहे'राज कविराय, कभी पकड़ा जब जाए,
प्रतिद्वन्दी की चाल, बेझिझक उसे बताए |
जिस धरती पर हो गया, पैदा नेता मित्र |
उस धरतीका गिरगया,समझो सकलचरित्र |
समझो सकलचरित्र,पुण्य सव मिट जाएंगे,
चोर,दुराचारी,ठग सब,आकर मिल जाएंगे |
कहे 'राज कविराय', करेगा गुण्डा-गर्दी,
रक्षा में नित तुम्हें मिलेगी खाकीवर्दी |
नेताओं का है सदा, एक मात्र यह इष्ट |
सुरसा सा धन स्वीस में,बढता रहे अभीष्ट |
बढता रहे अभीष्ट, लंगोटी जन की काटे,
खुद ही खाए माल, और खाए तो डाटे |
कहे 'राजकविराय'न चेते जनता पगली,
लेकर जूता हाथ, पूछ ले पिछ्ली-अगली |
जब से नेता के गई, कर में देश लगाम |
नीचे से ऊपर तलक,लगता भ्रष्ट निजाम |
लगता भ्रष्ट निजाम,रास्ता नजर न आए,
बार-बार,हर बार,घूम कर वह चुन जाए |
कहे 'राजकविराय' समस्या जस की तस है,
भूसा भरा दिमाग,बुद्धि जब सबकी ठस है |
नेता में मत ढूंढिए, खालिस शुद्ध चरित्र |
कई लाख में बानगी, मिलता एक पवित्र |
मिलता एक पवित्र,गजव का चालू बन्दा,
जब देखो तब मिले, मांगता सबसे चन्दा |
कहे'राज कविराय',नहीं मन मिलने देगा,
परम-मित्र को दिवस तीसरे,लड़वा देगा |
अफसर भ्रष्ट भारत का,
कसर कुछ कर नहीं सकता |
मुसीबत खुद बड़ी है ये,
किसी की हर नही सकता |
नजर में चोर सब इसकी-
है रिश्वतखोर पक्का ये,
बिनारिश्वत किसी का काम
बन्दा कर नही सकता |
है इसका रौल हिटलर का-
किसी को कुछ न समझे ये,
फकत ये कोर्ट से डरता-
किसी से डर नहीं सकता |
समझता लाट खुद को ये-
सभी को दीन प्राणी यह,
सिवा मंत्री की इज्जत के-
किसी की कर नहीं सकता |
ये चारा खा गया सारा-
मगर हिकमत से खाता है,
इसे अन्दर,नियम कानून-
कोई कर नहीं सकता |
बिना नारे लगाए ये-
किसी की सुनतो ले यारो,
जला लो तुम कई पुतले-
शरम से मर नहीं सकता |
ये डरता है तो सीएम से-
उसी के पैर छूता है ,
वो सर पर धौल भी मारे-
तो ये कुछ कर नहीं सकता |
जो आए'राज'पी एम तो-
चरण तक झुक के रहता है,
कभी भी सामने उस के-
उठा यह सर नहीं सकता |
दिन कड़क जवानी के अपने-
लज्जा के मारे, निकल गए |
जब हमें समझ थोड़ी आई -
तब सभी सहारे,निकल गए |
करके हिम्मत,दिल किए कड़ा-
उनके घर-द्वारे,निकल गए |
बस उसी वक्त, डैडी उन के-
निज मूंछ, संवारे निकल गए |
हम उन्हें देख कर कांप गए -
अरमान हमारे, निकल गए |
जो उन्हें ताकते थे, पल-पल-
वो नयन हमारे,निकल गए |
हम उहा-पोह में उलझ-उलझ,
दम साध,किनारे निकल गए |
वो आ न सके,हम जा न सके-
दिन स्वर्णिम सारे,निकल गए |
कब तक रूकते,वो कर विवाह-
रो-रो ससुरारे, निकल गए |
हम खडे कर रहे, अश्रुपात-
मुख से सिसकारे,निकल गए |
तन से ज़िन्दा, मन से मुर्दा-
हो कर दिन सारे,निकल गए |
हम खांस रहे, चौबारे पर -
वो ताक बिचारे,निकल गए |
वो हुए एक से पांच, उधर-
सब स्वप्न हमारे निकल गए |
बच्चों ने मामा कहा 'राज'-
तो दिन में तारे निकल गए |
मैं दुबला-पतला मुन्ना सा-
तुम मोटी धरा-धकेल प्रिया |
मैं स्कूटी तुम एनफील्ड,हम-
दोनों का क्या मेल प्रिया |
मैं हूं स्टेपनी नैनो की-
तुम सुगढ-सफारी का पहिया,
मैं चुहिया सा तुम पाव लगो-
कैसे होगा यह खेल प्रिया |
मैं हिन्द साइकिल टूटी सी-
तुम नई बुलेट हो परमप्रिया |
मैं हिन्दू सा निरपेक्ष जीव-
तुम तालिबान का धर्म प्रिया |
मै पहलवान सिंगल पसली-
तुम खली नन्दिनी लगती हो,
मैं हूं मुकेश का नील रतन-
तुम हो टुनटुन-मरहूम प्रिया |
तुम शाही पलंग सरीखी हो-
मैं चरमर करता तख्त प्रिया |
तुम भाग्यवान बंगले वाली-
मैं झुग्गी का कमबख्त प्रिया |
नीचे कालीनों के तुमने-
अपने चरणों को धरा नहीं,
तुम डनलप जैसी नरम-नरम-
मैं हूं चटाई सा सख्त प्रिया |
तुम दिल्ली की मैट्रो जैसी-
मैं पैसेन्जर पटियाला का |
तुम फिल्मों की डाटर जैसी-
मैं नौकर लंगड़े लाला का |
तुम धरती पर पग रखती हो-
वह धन्य-धन्य हो जाती है,
तुम फिल्मी मनोरमा गोल-गोल-
मैं मच्छर हूं पशु-शाला का |
तुम ब्रेड-माडर्न सूक्ष्म पकी-
मै जले हुए स्लाइस जैसा |
तुम दालमक्खनी फुल-थाली-
मैं क्वार्टर भर राइस जैसा |
मशरूम प्रिया तुम हाईब्रीड-
मैं एक सड़ा सा आलू हूं,
तुम प्राइज जैसी रोज बढो-
मैं रोज घटूं साइज जैसा |
है लुकिंग तुम्हारी जी.एम.सी-
मैं लगता चपर-कनाती हूं |
स्पीड-पोस्ट सी तुम एक्टिव-
मैं पोस्ट-कार्ड सी पाती हूं |
तुम हरियाने का हरित-फार्म-
मैं राजपुताने का मरू-थल,
तुम चिकनी हाटमिक्स जैसी-
मैं पैच-वर्क बरसाती हूं |
मैं फुटपाथी खुट्टल चाकू-
तुम चमचम करती आरी हो |
मैं पड़ा उपेक्षित कोने में-
तुम सब की बहुत दुलारी हो |
मुझ से केला तक कटे नहीं-
तुम चाप करो सब्जी-भाजी,
तुम मल्टी-परपज छुरी प्रिय-
फारेन की बनी दुधारी हो |
तुम ट्रक लगती हो टाटा का-
मैं नैनो का भी मिनी रूप |
मैं हूं अशोक की लाट अगर-
तुम शेर शाह का अन्धकूप |
तुम ताजमहल सी लगती हो-
मकबरा लगूं मै उजड़ा सा,
अकबर जैसी तुम तनी-तनी-
मैं हेमू पकड़ा हुआ भूप |
क्या जोड़ तुम्हारा मेरा है-
हम एक नहीं हो सकते हैं |
यदि साथ चलें तो हम दोनों-
हथिनी-चूहा से लगते हैं |
तुम पूर्ण पूर्णिमा सी गोरी-
मैं अमावसी अंधियारा सा,
हर एक गणित से जोड़घटा-
हम हास्यास्पद से लगते हैं |
हम एक नहीं हो सकते है-
हम एक नहीं हो सकते है |
सूझती तुम्हें ठिठोली
भूल जाओ कुछ देर को,आटा लकड़ी तेल |
अब बसन्त आया प्रिय,खेलें ईलू खेल |
खेलें ईलू खेल, चलो कुछ जश्न मनाएं,
हर चिन्ता को भूल,नैन से नैन लड़ाएं |
कहे 'राज कविराय', रोष से पत्नी बोली,
है पैंसठ की उम्र, सूझती तुम्हें ठिठोली |
चौंसठ के तो हैं प्रिय,क्यों बोलो तुम झूठ |
एक वर्ष की है अभी, हम दोनों को छूट |
हम दोनों को छूट, बसन्ती पर्व मनाएं,
भूल सभी मतभेद,गले से हम लग जाएं |
कहे 'राज कविराय',आंख पत्नी ने खोली,
ईलू क्या है? हमें बताओ, हंस कर बोली |
कटरीना जब फिल्म में, खींचे लम्बी तान |
पगलाई सी ढूंढती, एक प्रेमी इन्सान |
एक प्रेमी इन्सान, मिले तो गले लगाए,
धमा - चौकड़ी करे, यही ईलू कहलाए |
कहे'राज कविराय,समझ में अब तो आया,
चल उठ चलते पार्क,हिलाले कुछ तो काया |
बोली पोते हो गए, नहीं तुम्हें है शर्म |
शीत काल में हो रहे, जून मास से गर्म |
जून मास से गर्म , पार्क में डान्स करोगे,
पड़ा जोड़ में बाल, खाट पर पड़े सड़ोगे |
सुनो'राजकविराय' हंसी फिर हंसकर बोली,
पैंसठ में भी बोल रहे, पच्चिस की बोली |
उम्र भले पैंसठ सही,दिल है अभी जवान |
इस लायक लगतीं अभी,देदें तुमपर जान |
देदें तुमपर जान,फिक्र मत कर ह्डडी की,
ईलू-ईलू करें पार्क में, आजा जल्दी |
कहे'राज कविराय'चलो उठकर आ जाओ,
पत्नी बोली,अरे बुढऊ, जाकर सो जाओ |
प्रेमकथा का अन्त
पप्पू गया मदरसे,
तब तीन की उमर थी |
बस्ता था एक थैला,
तख्ती भी हमसफर थी |
गज भर की एक पटटी,
लेकर के साथ आया |
छोटा सा छुई-मुई वो,
आगे गया बिठाया |
कद में बराबरी सी,
काठी में बीस होती |
दिखने में खूबसूरत,
लड़्की भी साथ बैठी |
उसने सिसकते उसको,
जब कनखियों से देखा |
सच मानिए लगी थी,
उसको वो चन्द्रलेखा |
लड़की ने अगले दिन से,
मरियम का रूप धारा |
शाला में हर मिनट पर,
नाजों से उसको पाला |
वह भी डिपेंड उस पर,
पूरा ही हो गया था |
वो हो चुकी थी उसकी,
वो उसका हो गया था |
जब पांच पास कर के,
जोड़ा छटी में आया |
लगने लगा बदन को,
कन्या का माल खाया |
वो रोज ही तो कोई,
अच्छी सी चीज लाती |
रेसिस में बैठ उस को,
नाजों से सब खिलाती |
जब सातवीं में आए,
तब दिल की टोन बदली |
लगने लगी वो उसको,
जन्नत की एक परी सी |
पहले सी टाट पटटी,
कक्षा में अब नहीं थी |
मजनूं की बैच आगे,
लैला की बैक में थी |
पर इस तरह से बैठे,
दोनों को दे दिखाई |
हर दूसरे मिनट में,
नैनों की हो लड़ाई |
था दिन वो आठवीं का,
पप्पू ने हाथ पकड़ा |
मक्खन से जो बना था,
और चांद का था टुकड़ा |
छूते ही जिस्म थर-थर,
यूं कांपने लगा था |
जैसे मलेरिया का,
दौरा उसे पड़ा था |
घबरा के हाथ छोड़ा,
काबू में दिल को लाके |
लैला की ओर देखा,
पाया था मुस्कुराते |
आंखों में रस बढा था,
मुस्कान बढ गई थी |
वो भी मुहब्बतों की,
मंजिल को चढ रही थी |
ये ना-समझ का दौरा,
बस टैन्थ तक चला था |
दोनों अलग हुए जब,
कालेज अलग हुआ था |
घर उस का गैर बस्ती,
कुछ दूर पर बना था |
बिन उस को रोज देखे,
ना चैन पड़ रहा था |
पप्पू जी जा पंहुचते,
जब ठीक पांच बजते |
लैला भी छत पे आती,
कोई बहाना कर के |
कुछ दिन तो सिलसिला ये,
चुपचाप चल गया था |
पर कुछ दिन दिनों में जाहिर,
ये सब पे हो गया था |
फिर एक दिन वो आया,
बापू ने उस के आकर |
पप्पू को जम के ठोका,
लड़कों को साथ लाकर |
अब ये दशा थी उस की,
क्लीनिक में वो पड़ा था |
टांगे लटक रही थीं,
औंधा सिसक रहा था |
दो पौट रख दिए थे,
हाजत को नीचे ढक कर |
बिस्तर खराब फिर भी,
वो कर रहा था अक्सर |
एक नाक में नली थी,
पसली में प्लास्टर था |
पैरों में फट्टियां थी,
अब अस्पताल घर था |
वो तीन माह कैसे,
बरसों बरस से गुजरे |
ख्वाबों में ससुरा धुनता,
जागे तो बाप धुनते |
कानों पे हाथ रख कर,
उसने कसम उठा ली |
शादी के बाद निश्चित्,
बीबी को समझे साली |
अब हाल ये है उसका,
लड़की जो देखता है |
छोटी बड़ी सभी को,
दीदी ही बोलता है |
बोला वो 'राज' कल ये,
अन्तिम ये 'विल' करूंगा |
करना ना प्यार कोई,
ये ब्लड से लिख मरूंगा |
टापते हमको दीखे
देवों के आयोग ने, रख बल,बुद्धि,विवेक |
मुख्य दलों से कहदिया, छांटो इनमें एक |
छांटो इनमें एक, लपक हाथी बल छांटा,
शातिर पंजा छीन, स्वंय बुद्धि ले भागा |
कहे'राजकवि', जगे देर से कमल सरीखे,
ले कर मात्र विवेक, टापते हम को दीखे |
इस विवेक से हो गई, बीजेपी कन्फ्यूज |
सही वक्त पर मुददआ,कभी न करती यूज |
कभी न करती यूज, धूल में लट्ठ चलाते,
पिटते दिग्गी, चित्त प्रिंस राहुल हो जाते |
कहे'राजकवि',वोट सभी खिंच कर आजाते,
अगर वरूण को, राहुल के पीछे दौड़ाते |
मिला सभी को देखकर, सपा गई बौराय |
संविधान से यह कहा,हमपर क्यों अन्याय |
हमपर क्यों अन्याय, हमारी जड़ें काटते,
मुस्लिम जन-संख्या पर केवल सीट मांगते |
कहे'राजकवि',संविधान तब रो कर बोला,
वोटतुला से अलग,कभी क्यों मुझे न तोला |
तोला है तो क्या हुआ,सब करते यह अन्य |
लुंज-पुंज तुम को बना, नेता जी हैं धन्य |
नेता जी हैं धन्य,लोकपाल पर चुप्पी साधे,
सभी जांच की शक्ति, स्वंय कंधों पर लादे |
कहे'राजकवि', रीढ बिना इस लिए बनाएं,
जन को दस परसैंट, स्वंय नब्बे खा जाएं |
माल-माल उदरस्थ,मठा तुम सब को छोड़ें |
बनें सैकुलर मगर, नीति में धर्म निचोड़ें |
ऊंच-नींच की नीति, जाति का डालें पंगा,
ठीक वोट से पूर्व करा दें, मजहब - दंगा |
कहे'राजकवि', यही जीतने के सब फण्डे,
करना जरा विरोध, पुलिस के भांजें डण्डे |
Wednesday, December 26, 2012
दफ़ा हो जाएगा
दफ़ा हो जाएगा
जब हमारे बीच से, लीडर दफ़ा हो जाएगा |
क्या रहे बाक़ी यहाँ , कोरा सफ़ा हो जाएगा |
रौनक़ें सब साथ में, उसके यहां से जाएंगी,
बच गया ससंद भवन भी ,बेमज़ा हो जाएगा |
सब बुराई मुल्क की जब, साथ उसके जाएगी,
योजना पर योजना का, सर सफ़ा हो जाएगा |
देश में बदकारियों का, हासिल न हो नाम तक,
मुफ़लिसी का नाम तब,हाजत-रफ़ा हो जाएगा |
क़ौम की सेहत गिरेगी, हर तरफ़ जब हो सुकूं,
मुल्क का हरएक बशर,क़ाबिल-दुआ हो जाएगा |
मंच पर रोएंगे सब,पर मन में होंगे खुश सभी,
जब जहां बेग़म हुआ,तो क्या मज़ा रह जाएगा |
जिन दफ़ाओं पर दफ़ाएं, लग रहीं थीं रात-दिन,
दर्दे-सर सब, उन दफ़ाओं का, दफ़ा हो जाएगा |
सिलसिला जब ख़त्म हो जाएगा इनका देश से,
शैतान भी हमसे पलट कर,दर-ख़फ़ा हो जाएगा |
'राज' लीडर जाएगा तो, शैतानियत जाएगी संग,
अम्न होगा, हर तरफ़ सब, बेमज़ा हो जाएगा |
Sunday, November 4, 2012
अस्लियत-ए-थाना
अस्लियत-ए-थाना
चोर चुरा कर ले गए,घर के थाल-परात |
भान हुआ इस बात का हमको बीती रात |
हमको बीती रात, दौड़ कर थाने धाए,
किन्तु वहां पर हमने, सारे सोते पाए |
कहे 'राज' कविराय,हिलाकर बहुत जगाया,
हारगए तब,उसको सौ का नोट दिखाया |
बन्दआंख से दिख गया,मुंशी जी को नोट |
उठकर सीधा हो गया, मारा हमें सलूट |
मारा हमें सलूट,कौन काम से आया पूछा,
किस्सा हमने, बता दिया चोरी का पूरा |
कहे'राजकविराय'कहा नोट को अन्दर करके,
आ दो दिन के बाद,अभी जा सोजा घर पे |
क्यों दोदिन के बादक्यों लिखिये अभी रिपोर्ट |
अभी लिखो जो आप तो, क्या है उसमे खोट |
क्या है उसमे खोट, कहा तो वह् गुर्राया,
और कान में चुपके से, यह राज़ बताया |
बोला जी डी चल रही, दो दिन पीछे यार,
लिक्खूं कैसे मैं रपट, बेबस है सरकार |
भागी कन्या पकड़ कर, लाए दरोगा साब |
दो दिन से निबटा रहे, उसका सभी हिसाब |
उसका सभी हिसाब,'स्टेटमेंट' उसके लेते हैं,
लेकर 'पूर्ण बयान', सीनियर को देते हैं |
कहे 'राज कविराय', आज 'एस ओ' जी लेंगे,
ले कर 'पूर्ण बयान', पेश न्यायालय कर देंगे |
इसी लिए 'जी डी' रूकी, परसों होगा काम |
कर्म जरूरी 'ब्यान' है , लेते सब हुक्काम |
लेते सब हुक्काम , बहुत से 'हफ्ते' आने हैं,
मुझको ही नीचे से ऊपर तक, बंटवाने हैं |
कह मुंशी सुन 'राज' , रपट परसों लिखवाना,
स्टेटमेंट लेने में ,बहुत बिजी है कलसे थाना |
होते भी खाली यदि, काम ये क्या कर लेंगे |
ले इन्क्वायरी नाम, रोज घर पर पहुंचेगे |
बटर टोस्ट के साथ, मुफ्त की चाय पियेंगे |
उल्टे सीधे कई, आप से प्रश्न करेंगे |
दे कर सौ का नोट , हमें मिल गया इशारा |
झेलो सब नुकसान , न आओ यहां दुबारा |
Saturday, October 27, 2012
'काका जी'से प्रेरणा, उनसे मिला रूझान |
एकलव्य होकर लिया,इन छक्कों का ज्ञान |
इन छक्कों का ज्ञान, छंद से इन्हें न तोलें,
मिले नहीं आनन्द, तभी कुछ बढकर बोलें |
कहे'राजकविराय' फाड़ कर दुख की छाती,
सीधे स्वर्ग सदेह, हास्य कविता पंहुचाती |
मिले सतत आनन्द,'हास्य का यही ज्ञान है |
'काव्यकला' या 'छंददृष्टि' का नही ज्ञान है |
कहे 'राजकविराय', छंद के मानक जितने,
'हास्य-व्यंग्य'में जान डालने, त्यागे सबने |
Tuesday, September 25, 2012
haasya vyangya ke rang- 'raaj kavi' ke sang.
haasya vyangya ke rang-
'raaj kavi' ke sang.
-raaj saksena
1. शर्म न आती
-राज सक्सेना
जन-पथ ने भर दी हवा, मनमोहन हो क्रुद्ध |
दिग्गी-मुख से लड़ रहे, सभी दलों से युद्ध |
सभी दलों से युद्ध , पुलिसिया लट्ठ बजाते,
करें कायरी - काम, उसे पर उचित बताते |
कहे 'राज कविराय', अरे 'डायर' के नाती,
कठपुतली बन पुलिस,तुझे क्या शर्म न आती |
भ्रष्टों की सरकार क्यों , लाए काले नोट |
राष्ट्र्-कार्य में लग रहा, दुष्ट-जनों को खोट |
कुछ भी करलो मगर तनिक यह शर्म न खाती,
न्यायालय के हुक्म तलक, यह पी-पी जाती |
कहे 'राज कविराय',माल सब जो भी खाया,
कैसे वापस लाएं, इन्हीं ने जमा कराया |
जब तक हम सरकार हैं, नहीं लाएंगे नोट |
हम हैं पक्के बे-शरम, जितनी मारो चोट |
जितनी मारो चोट, नई नित हांके जांए,
हिन्दू-मुस्लिम कार्ड,नवल नित खोले जाएं |
कहे 'राज कविराय',चुना तो कष्ट उठाओ,
हम सब खाएं माल, आप सब लातें खाओ |
कठपुतली पी एम रखा, धागे रख कर हाथ |
पी एम ओ में चल रहा,दस जनपथ का हाथ |
दस जनपत का हाथ, दुष्टता की हद कर दी,
राष्ट्र-शत्रु की तरह, चढाई जन पर कर दी |
कहे 'राज कविराय', राष्ट्र-हित रखकर आगे,
राष्ट्र-प्रेम रख प्रथम, तोड़ पी एम सब तागे |
2. तमाशा होली का
-राज सक्सेना
संसद मे घुस, देखें चलकर, यार तमाशा होली का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |
राज-नीति की दुल्हन देखो, कैसे रंग दिखाए ,
भेंट चढा कर एक सत्र की, जे पी सी बन पाए |
मजबूरी की टेर लगा कर, फेवर - जन का चाहे,
सारे साक्ष्य हटा ले राजा, तब छापे डलवाए |
छिनरा रक्षक चुना गया है,प्रजा-तंत्र की डोली का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |
कलमाडी की 'कला' छिपा कर, वर्षों दिया सहारा |
इतने दिन दे दिये, हटा दे वह रिकार्ड ही सारा |
किन्तु बोलता पाप स्वंय ही, यह इतिहास रहा है,
नहीं ढूंढने पर फिर मिलता, रक्षक कोई किनारा |
एटीएस भी दुश्मन बनकर, खेले खेल ठिठोली का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |
बुलेटप्रूफ में घुस कर अपने ,' मन-मोहन' बेचारे |
लाचारी का राग अलापें, गठ - बन्धन के द्वारे |
कोल-गेट घोटाला खुद ही, किया मन्त्रि-पद रहते,
अब भी इस पर अड़े हुए हैं, हम पवित्र है सारे |
घोटाले करके भी रखते, कब्जा 'पीएम खोली' का |
बलि का बकरा बना हुआ सरदार 'बिचारा' टोली का |
3. जनता भी निराली है
-राज सक्सेना
इस दौर-ए-फ़्जीहत की जनता भी निराली है |
चुनती है जिसे ख़ुद ही, देती उसे गाली है |
नेता तो जन्म से ही,मंगतों की नस्ल का है,
कल वोट मांगता था, अब नोट सवाली है |
जाली का हाल ये है, अब कौन पूछता है,
असली है नोट,या फ़िर हरचीज़ सा जाली है |
खेतों को खा रही हैं, बाढें ही आज जमकर,
बाकी बचे तो खाऊं, ताके हुए माली है |
नौकर का पेट हदसे,अब बढ गया है इतना,
वेतन तो हक है उसका,रिश्वत भी हलाली है |
कर के नकल से बी.ए.,है छात्रदल का नेता,
छोटी मिरच सरीखा, हद दरजा बवाली है |
खाता है कसम सबसे,मैं तो नहीं पीता हूं,
भेजो जो शाम बोतल,मिलती सुबह खाली है |
एक सुन्दरी को लेकर,दौरे पे आया अफ्सर,
लाया है किराए पर, कहता है कि साली है |
हर एक चलाता है, हाथों को 'राज'अपने,
पड़ जाय तो थप्पड़ है,बज जाय तो ताली है |
4. कुर्सी के रंग
-राज सक्सेना
उतरा हुआ था चेहरा,बद-रंग जंग खाया |
जब से चुनाव जीता, चेहरे पे रंग आया |
सूरज नहीं निकलता,मिलने को लोग आते,
मंहगी मिठाई के संग,डिब्बों में नोट लाते |
खीसें निपोर कर वे, कर जोड़ हिनहिनाते,
परिचय नहीं है तोभी,चरणों को कर लगाते |
चपरासियों की सेना,घर पर लगी हुई है,
आदेश के लिए वह,तन कर खड़ी हुई है |
बेबात ही वह जबतब,कुछ ताव खा रहे हैं,
चलता है हुक्म उनका,सबको दिखा रहे हैं |
कुछ चेलियां भी आकर,तीरे नजर चलाएं,
नैनों में है निमंत्रण,खुलकर उन्हें दिखाएं |
सत्ता के साथ रहना,फितरत है मानते हैं,
लालच कमाई का है,इतना तो जानते हैं |
इतने निशाचरों में किसकिस से ये लड़ेंगे,
आखिर कहींतो आकर ये धमसे गिर पड़ेंगे |
अब 'राज'तुम बताओ कैसे बचाएं इनको,
काजल की कोठरी में,रहना सिखाएं इनको |
5. तीक्ष्ण वाण हैं
-राज सक्सेना
बनते हैं रक्षक जनता के,पर दुर्गुण की अतुल खान हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |
इच्छाओं के महा-समर में, बुरा हाल है अब प्रबुद्ध का |
संसद का पावन मंदिर अब,बनता जाता क्षेत्र युद्ध का |
स्वप्नलोक सी लोकसभा को,बदल दिया मछलीमण्डी में,
करते शोर्-शराबा खुद पर, बता रहे आचरण शुद्ध सा |
घोटालों के प्रबल प्रशिक्षक, कमीशनों के अतल ज्ञान हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |
छोड़ दिया है सभी पुरातन,अधुनातन के अन्धे युग में |
हाथ स्वार्थ के,खेल रहे हैं, यन्त्र सरीखे चलते युग में |
मर्यादा का ढेर लगा कर, दिया पलीता उसमें सब ने,
शकुनि के ले पांसे हमसे, खेल रहे हैं अब के युग में |
चक्र-व्यूह में हमें फंसाकर, दुर्योधन से पहलवान हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |
हर तन एक कुंवारी मां है, जारज जिसने जने अनेकों |
कुन्ती जैसे पड़े द्वंद में , जिन द्वंदों में द्वंद अनेकों |
हुई व्यवस्था ध्रतराष्ट्रों की, कौन पीसता कौन खा रहा,
हर कुर्सी दुःशासन जैसी, चीर - हरण में लगे अनेकों |
फितरत से कैसे हट जाएं, बददिमाग हैं, बेइमान हैं |
चेहरों पर चिपकी मुस्कानें,टंगे पीठ पर तीक्षण वाण हैं |
6. सभी भ्रष्ट है?
-राज सक्सेना
देखा जिसकी दुम उठा, लगा वही मादीन |
सभी भ्रष्टतम लग रहे, करें जुर्म संगीन |
करें जुर्म संगीन, बताते भ्रष्ट और को,
खा जाते हैं स्वंय,दबा कर खुले तौर को |
कहे'राज कविराय',मौन पीएम को भाए,
कठपुतली नेतृत्व, स्वंय नाचे न गाए |
लल्लू सा नाटक करे, चला रहा सरकार |
इस गठबन्धन धर्म को,कोटि-२ धिक्कार |
कोटि-कोटि धिक्कार, अगर ईमामदार हो,
मारो लातें चार, जहां पर अनाचार हो |
कहे'राज कविराय',मगर तुम डटे रहोगे,
बनकर बगुला भगत, देश को चरे रहोगे |
आतंकी आतंक का, फैलाता निज जाल |
हो कोई भी नष्ट पर, तुमको कहां मलाल |
तुमको कहां मलाल, चिपक सत्ता से बैठे,
करें विरोधी नष्ट , सूत्र हैं अपने ऐसे |
कहे'राजकविराय',स्वार्थ से निकलो भय्या,
अन्ना जी से बड़ा, नहीं रह गया रुपय्या |
लालच से होता पतन, लालच बुरी बलाय |
जितना भी रक्खो कमा सभी यहीं रह जाय |
सभी यहीं रह जाय, नीति अन्ना की करदो,
रिश्वत का हर माल, मालखाने में धर दो |
कहे'राज कविराय, बहुत संतोष मिलेगा |
जनता दे हर मान, बहुत दिन राज चलेगा |
7. अन्ना
-राज सक्सेना
अन्ना जी के सामने, साबित हुए निखद्द |
लम्बी-लम्बी हांक कर, बने हुए थे सिद्ध |
बने हुए थे सिद्ध, थूक कर चाट रहे हैं,
ओमपुरी और किरन मैम को डांट रहे हैं |
कहे'राज कविराय'नयनसुख अब तो जागो,
जाग गया है देश, सुनो लम्बी मत हांको |
रालेगन ने फिर किया, गांधी -दांव प्रसिद्ध,
'नवगांधी'पैदा हुआ, किया 'सिद्ध'ने सिद्ध |
किया सिद्ध ने सिद्ध, महा-भारत दोहराई,
अर्जुन बन कर लड़े, सही औकात दिखाई |
कहे'राज कविराय', मीडिया कृष्ण सरीखा,
सिर्फ दिखाया सत्य, लगाया नहीं पलीता |
लीला के मैदान में, 'राम-लला' सा युद्ध,
ताने सिर जनता खड़ी,भ्रष्ट-जनों से क्रुद्ध |
भ्रष्ट-जनों से क्रुद्ध, चाल से चेहरे काटे,
खुद ही पीने पड़े, जहर जितने भी बांटे |
कहे 'राज कविराय', मनीष, दिग्गी दुर्भागे,
पड़े चोर पर मोर, युद्ध से छिप कर भागे |
8. नेता चुरा के खा गया
-राज सक्सेना
गलती करेगा और फिर, घूरेगा और को |
क्या हो गया इन्सानियत के अब के दौर को |
हमने चुना देगा हमें, कुछ दिन तो रोटियां,
नेता चुरा के खा गया, हम सब के कौर को |
टीचर की ज़ात देखिए, शिष्यों से पी शराब,
शिष्या से दुष्ट चाहता, कुछ मन के और को |
डेटिंग़ पे जा रही हैं, दादी की उम्र है-,
घुन लग गया है दोस्त, जवानों के तौर को |
पीएस के साथ व्यस्तता फ्रीडम है किस कदर,
मैडम से घर में व्यस्तता, करने दो और को |
नन्ही सी उम्र है मगर, दो-तीन फ्लर्ट कर,
दिल्ली में हुस्न बांट कर, चल दी लहौर को |
'लिव इन रिलेशनों'से बढती है शान या रब,
फन्दे में शादियों के, फंसने दो और को |
शादी बिना हों बच्चे, स्टेटस है आज-कल,
'काज़ी'बने हो'राज'क्यों,चलने दो दौर को |
9.फोन करा दो
-राज सक्सेना
एक मोड़ पर अटक गई है |
सही राह से भटक गई है |
मैंने जम कर जोर लगाया,
फाइल मेरी अटक गई है |
चमचे जी अब इसे उठादो,
मंत्री जी से फोन करादो |
बढकर आगे आओ कन्हैया |
अटक गई दफ्तर में नैया |
चाय तलक को तरसे बाबू,
कृपा करो,छल-छंद करैया |
उजड़ा दफ्तर इसे बसा दो,
मंत्री जी से फोन करादो |
पागल अफसर आया सनकी |
दफतर में कर दी है कड़की |
ना खाता , ना खाने देता,
दफतर की ये दुरगति करदी |
जीवन सबका आओ बचादो,
मंत्री जी से फोन करादो |
मुर्गियां मरोड़ी, अण्डा तोड़ा |
हमको नहीं, कहीं का छोड़ा |
सारे काम स्वंय करता है,
'नेट वर्क' दफतर का तोड़ा |
दस्तूरी और रस्म बचादो |
मंत्री जी से फोन करादो |
अगर नहीं था अपने बसमें |
पी कर क्युं खाईं थीं कसमें |
दूर पटककर इस अफसर को,
जारी रखो पुरानी रस्में |
फौरन तड़ीपार करवा दो |
मंत्री जी से फोन करादो |
अगर नहीं यह हुआ प्रियेवर |
रुतबा घटे, निकल जाए डर |
तड़ी-पार कर दिया इसे तो,
छा जाओगे फिर से सब पर |
सब की डूबी साख बचादो,
मंत्री जी से फोन करादो |
10. हज़ल*बन गई
-राज सक्सेना
पिटे शेर फोड़े, हज़ल बन गई है |
बंधे बन्द तोड़े, ह्ज़ल बन गई है |
वो कुछ चुटकुले पापुलर जो हुए थे,
वही सब झिंझोड़े,हज़ल बन गई है |
इधर से उठाए , उधर से बटोरे,
रखे और निचोड़े,हज़ल बन गई है |
चुरा पंक्तियां , गैरशायर की रखदीं,
बिनाकुछ भी जोड़े,हज़ल बन गई है |
शायर बने वो गज़लगीत पर जब,
चलाए हथौड़े, हज़ल बन गई है |
रखो साफसुथरी,'हज़ल' कह रहे हो,
कहें सब छिछोड़े,हज़ल बन गई है |
कहां तक करेगा, हज़ल 'राज' लम्बी,
यहीं रुक भगोड़े, हज़ल बन गई है |
*हज़ल-हास्य गज़ल
11.नेता दिखाए चलके
-राज सक्सेना
यदि सत्य की डगर पर, नेता दिखाए चल के |
बाकी बचे जो बरतन, बिक जाएं सारे घर के |
जनता के बीच रहना, यह गांठ बांध लेना,
हिस्सा तभी मिलेगा, छीनोगे आगे बढ के |
आगे कदम बढे तो, ये मुड़ के देख लेना,
न लटक रहा हो कोई,तेरी अपनी दुम पकड़के |
नेता-गिरी में अबतक,काटा जो माल जमकर,
छापा पड़े न कोई, सैटिंग रहे ये जम के |
गैरों की बीवियों पर, नजरें जमाने वाले,
किसी गैर की पहुंच तो,अन्दर न तेरे घर के |
है चांद पूरा लेकिन, दिखता है तुझको आधा,
पूरा जो देखना है, तो देख सर पे चढ के |
आ जाय जो पकड़ में, उस से ही छीन लेना,
कपड़ उतार उसके, देखो तमाशे बढ के |
यह क्या गज़ब हुआ है,पत्नी के साथ 'वो' है,
ऐ 'राज' भाग ले बस, लेकिन अरे सभल के |
12. नेता बिचारा
यह नेता बिचारा कहां जा रहा है |
कुर्सी की खातिर मरा जा रहा है |
लिए जीतने के ,बिनबुलाए किसीके,
सभी आयोजनों में घुसा जा रहा है |
मजारों पे जाता, ये चादर चढाता,
सिज़्दों पे सिज़दे किए जा रहा है |
बताया है शायद, नजूमी ने इसको,
गधोंको जलेबी, खिला आ रहा है |
कहा है किसी नेतो गोबर बदन पर,
रगड़ कर नहाने, चला जा रहा है |
मगर इससे कुछभी,न हासिल रहेगा,
वोटर फिसल कर,भगा जा रहा है |
किया 'राज' वादा, जो नाले का पहले,
वो खाई बना , सामने आ रहा है |
13. देखा करो
घर से कालेज आती-जाती, लड़कियां देखा करो |
देह् को जम कर दिखाती, झलकियां देखा करो |
है जवानी चार दिन की,नैन-सुख लो चार दिन,
मल्लिका सहरावतों सी, तितलियां देखा करो |
जब कभी मन में उठे, देखें चलो बाकी बचा,
पूल में खुल कर नहाती, मस्तियां देखा करो |
देखना चाहो महन्तों की, गज़ब अय्याशियां,
रास रच गंगा नहाती, चेलियां देखा करो |
हो पुराने रूप का, जलवा तुम्हे जो देखना,
वाक पर सजधज के आती, दादियां देखा करो |
किस तरह बासीकढी में रह के उठता है उबाल,
'हाट पिक्चर' हाल जातीं, हस्तियां देखा करो |
अपनी पत्नी हूर हो,उसमें भला अब क्या नया,
कर बहाने 'राज' सबकी, पत्नियां देखा करो |
14. जमकर भरा है चारा
नेता का पेट देखो, जमकर भरा है चारा |
भारत में हाय कितना,भूखा है ये बिचारा |
पहले तो खारहा था,भारतका अन्न छिपकर,
पूरा नहीं पड़ा तो, चट कर गया है चारा |
सेवा में लोकजन की,कितना थका है देखो,
मालिश के वास्ते वह, बैंकाक है बिचारा |
भारत की दूर करने, बे-रोजगारियों को,
थाई की सैक्स-मण्डी, छाने फिरे है सारा |
कितनी फिकर है देखो,भारतके वित्त की भी,
कर्जा लिया है सबसे, बांटेगे मुल्क प्यारा |
कलतक मैं खींचता था,चूना लगा के ठेली,
अब तीन कोल माइन, बापू रखे हमारा |
गद्दी पे जब तलक है, बनता है शेर जैसा,
कुर्सी से जब हटेगा, चूहा बने बिचारा |
उठ 'राज' आज इनको,सच्चा-सबक सिखाएं,
वरना ये बेच देंगे, कौड़ी में देश सारा |
15. आज का भगवान
आज का भगवान पैसा, और सब है फालतू |
जिस तरह भी हो कमाले,रख यही बस ख्याल तू |
दूसरे के माल पर रखकर नज़र,ताकता रह हर घड़ी,
जब मिले मौका हड़प ले, बे-झिझक हर माल तू |
ये है जनता, ये तेरी जागीर है, अब हर घड़ी-,
खून पीकर, मांस खा, और खींचले सब खाल तू |
जब विरोधी सर उठाएं, उनके सर को तोड़ने,
चार - मुस्टण्डे हमेशा, अपने घर में पाल तू |
कोई नेतानी मिले जब, बे-सहारा घूमती,-
बेझिझक अपने हरम में, बिन-बियाहे डाल तू |
कुछ बरस नेता-गिरी के, फिर न पूछेगा कोई,
उन दिनों में काम आए, इतना कमा ले माल तू |
'राज' इतने पर भी पूरा, भर सके न पेट तो,
मन्दिरों में जा चुरा ले, जेवरों का थाल तू |
16. नेता
नसल है बे-शरम नेता, कभी भी कम नहीं होता |
विरोधी तोप भी दागें, असर इस पर नहीं होता |
अमर एक बेल होती है, ये नेता उस नसल का है,
तना काटो कि जड़ काटो, कहीं से कम नहीं होता |
इलेक्शन में कसम खाए, कि पैसा खा नहीं सकता,
मगर छापा जो डालो तो, अरब से कम नहीं होता |
ये बे-गम है,मजे की नींद लेता,रात भर जग कर,
सिवा कुर्सी के इसको और कोई गम नहीं होता |
ये नेता रोज वादे कर, मुकर जाता है पल भर में,
बहाने लाद कर हम पर, कभी हम-दम नहीं होता |
ये झिड़की'राज'की खाता,मगर बस दांत दिखलाता,
कभी वोटर की सेवा को , इसे टाइम नहीं होता |
17. सुन पाएंगे क्या ?
लीडराने क़ौम, कड़वे सच को सुन पाएंगे क्या ?
कुछ दिनों के वास्ते, सत्ता से हट जाएंगे क्या ?
आज जन की मांग है बस एक अन्ना लोकपाल,
है मनोबल क्या तुम्हारा,उसको ला पाएंगे क्या?
वोट के लालच में तुमने,कीं हदें सब पार अब,
देश 'कब्रिस्तान' हो जाए,तो फिर खाएंगे क्या ?
बेच डाला देश को, बस चन्द टुकडों के लिए,
अब विदेशी हाथ में, सत्ता थमा जाएंगे क्या ?
नस्ल-ए-नौ पूछेगी तुमसे क्यों हुई यह दुर्दशा,
अपने बारे में सही, उसको बता पाएंगे क्या ?
है जरूरत देश को, मजबूत एक किरदार की,
छोड़कर ये पिलपिलापन,सख्त बनजाएंगे क्या ?
अब शिवा-राणा सरीखा, त्याग मांगे देश ये,
देशहित की भावना,निजदिल में लेआएंगे क्या ?
इस क़दर इतनी मुहब्बत,कुर्सियों से क्यों हुई,
देश की जनता को इसका'राज'बतलाएंगे क्या ?
Tuesday, April 24, 2012
श्री पंचर दोहावली
श्री पंचर दोहावली
'पैसेन्जर'फा इल बनी,हर 'टेसन'रुक जाय |
'बापू-मुख'दर्शन करे, दूरान्तो बन जाय ||
लक्ष्मी आनी-जानी, आज की राम कहानी |
खुला सांड़ अफसर फिरे, बाबू लिखता नोट |
रेस्ट-रूम में मौज कर, होता रहे प्रमोट ||
परम्परा यही पुरानी, आज की राम कहानी |
नेता'राम-निवास जी',कहते पि.ए.बुलाय |
सूर्पनखा को बुक करो, सीता करे डिनाय ||
चाहिये रोज जवानी, आज की राम कहानी |
खेलों तक में हो रहा, जी भर शोषण यौन |
बिचलन निज संस्कृति का,कबतक देखें मौन ||
संस्कृति होती फानी,आज की राम कहानी |
बहू सास से बोलती, टिकट मसूरी लाय |
तीन दिवस के बाद में,आना मौज मनाय ||
हमें भी मौज मनानी,आज की राम कहानी |
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