Thursday, May 26, 2011

ye bhart desh hai mera

ये भारत देश है मेरा 

जूता चप्पल से संसद में,
होता      मिलन-विदाई /
माइक कुर्सी तोड़ फेंककर ,
करते      रस्म - अदाई /
गाली देकर प्रेम-प्रदर्शन ,
सबने      यहाँ    बिखेरा /
ये भारत देश   है    मेरा /

रोज-रोज होते   घोटाले,
जमकर  उठे      हवाला /
कभी तहलका शोर मचाये,
चारा   खाए          लाला /
हर सौदे में भेंट कमीशन,
चलता      तेरा -    मेरा /
ये   भारत  देश  है  मेरा /

सत्य,अहिंसा छुपकर चलते,
तन   कर   चले    लुटेरा ,
धर्म,जाति और व्यक्तिवाद को,
मन   में       लिए   घनेरा /
दुष्ट    फरेवी पांच साल   में ,
करते        आकर      डेरा /
ये   भारत  देश  है  मेरा /

देव-भूमि   पर झूठे - जोगी,
करते        कर्म      निराले /
ऊपर  से हैं , धवल-गेरुआ ,
अंदर    से      सब     काले /
बेच  रहे भगवान सडक पर,
बाँटें            घना     अँधेरा /
ये   भारत  देश  है  मेरा /

डरे -डरे     से  दादा-दादी ;
निश-दिन मौत    पुकारे /
नित्यनियम से कोई बाप को,
सौ - सौ       जूते     मारे /
भाई-भाई   के मन   रहती ,
नफरत        डाले     डेरा / 
ये   भारत  देश  है  मेरा /

हर बालक सलमानखान है,
कटरीना        हर      बाला /
गली-गली में खुली मुहब्बत,
करते           लाली -  लाला /
कच्छी ब्रेजरी पहन बेटियां,
घुमे             शाम     सवेरा /
ये   भारत  देश  है  मेरा /
          धन वर्षा, हनुमान मन्दिर 
          खटीमा-262 308  (उत्तराखंड) 
          मो- 09410718777

Saturday, May 21, 2011

            बाबू  जी 

बाबू जी नव वर्ष में, नित-नित फूलें आप,
इसी बरस दिखनें लगें,   हाथी जी के बाप /
 हाथी जी के बाप,  तोंद   इतनी बढ़  जाये,
छोटे फीते से इस वर्ष,   नहीं   नप    पाए /
कहे`राज `कवि , बाबू जी का नियम पुराना,
बिना भेद, रिश्वत ही खाना, जम कर खाना /

Friday, May 20, 2011

                     ईओ 

ईओ जी इस वर्ष भी, खींचो जमकर नोट ,
नोट खीचने में तुम्हें, कब लगता है खोट /
 कब लगता है खोट ,नहीं है वोट मांगना,
कब करना है तुम्हें , किसी से कोई याचना /
कहे `राज `कवि , कौन तुम्हें कुछ कह सकता है,
सिर्फ तुम्हारी सहमति से, कुछ हो सकता है /


                  ओ  एस 

गये वर्ष ओ एस रहे, अक्सर बहुत बीमार,
इसी वजह हिस्सा मिला, काफी पैसे मार /
 काफी पैसे मार, भला किसको समझाएं ,
एक बात जो है बिशेष , तुमको बतलाएं /
कोई फाइल बिना, इधर से उधर न होती ,
बिन दस्तूरी इन्हें दिए भी, गुजर न होती /


                         मेम्बर  


मेम्बर जी इस वर्ष में, ढक कर रखें फरेब,
धोके से जाहिर न हों, मनमंदिर के एब  /
मनमंदिर के एब , कांड चुपके से करना ,
जनता को हो लाभ. नहीं गलती से करना /
कहे `राज` किसी तरह भी, घर को भरना,
ऊखल में जब बैठ गये, मूसल से क्या डरना /


              मंत्री जी 




मंत्री जी इस वर्ष भी, इतना रखना ध्यान,
साथ नाक के काट दो, विरोधियों के कान /
विरोधियों के कान, नहीं कुछ सुन पायेगा,
फिर विरोध संसद में,  कैसे  कर   पायेगा /
कहे `राज`कवि, बिन रिश्वत के काम न करना,
खुद वोटर लेता घूस, आपको फिर क्या डरना /

Thursday, May 19, 2011

naye vrsh ki kamna

भली भांति सब देख नए वर्ष की कामना 
ने ता

नए वर्ष में आपको  , दौरे पड़ें अनेक ,
पूर्ण वर्ष जलते रहें, सबकी उन्नति देख /
सबकी उन्नति देख, टूर फारेन के मारें,
कपड़े सारे  उतर जाएँ जांचों में सारे /
कहे `राज`कवि , गये वर्ष से कांड न करना,
कहीं जाओ पर मान, वहां भारत का रखना /

गुरु 

नया वर्ष शुभ आपको, जुड़ कर नये प्रसंग,
सुंदर शिष्या एक रखें,बिना ब्याह के संग /
बिना ब्याह के संग, रोज टी वी पर आयें,
अपना काला मुंह, जब तब उस पर दिखलायें,
कहे `राज` कवि, लव गुरु से सम्माने जाएँ ,
जनता मारे शूज, अनगिनत गिने न जाएँ /

अफसर 


नये वर्ष में आपको , रिश्वत मिलें अनेक,
मगर चार जूते पड़ें, सिर पर गिन कर ऐक /
सिर पर गिन कर ऐक, कभी ऐसा हो जाये,
तुमको भी निज काम, घूस देना पड़ जाये,
कहे `राज`कवि, जितना भी हो माल कमाया,
रेड पड़े तो निकल जाए,  सारे   का   सारा /

चेयरमैन


चेयरमैन जी आपको `चेयरें` मिलें अनेक,
लकिन उन पर बैठिये, भली भांति सब देख /
भली भांति सब देख, विरोधी जाल रचाएं,
रास रचाते हुए , आप उसमें फंस जाएँ /
कहे `राज` कवि , दिन  ऐसे   न      आयें ,
आप तमाशा घुस क़र देखें, बाज़ न आयें / 

Wednesday, May 18, 2011

ujjvl,

उज्ज्वल, उन्नत, उत्तराखण्ड
                                                       - डा० राज सक्सेना 

सफल-समन्वित,श्रम-शुचितालय ,
शीर्ष-सुशोभित, श्रंग - शिवालय /
विरल- वनस्पति, विश्रुत-वैभव,
वनधन, पशुधन- पूर्ण हिमालय /

                         पावस -प्रचुर, प्रकल्पित खंड /
                          उज्ज्वल, उन्नत, उत्तराखण्ड /

हेमकुंड,   हरिद्वार    यहाँ      पर ,
मस्जिद, चर्च , विहार यहाँ    पर /
कलियर, पंच- प्रयाग, ग्लेशियर ,
बद्रि- नाथ ,   केदार  यहाँ     पर /

                        मधुमंडित, महिमा सत-खंड /
                         उज्ज्वल, उन्नत, उत्तराखण्ड /

गंगा-  यमुना,   पुण्य -धरा    पर ,
जन्म यहीं  लें ,  बूंद -बूंद      कर /
अन्नकोष - आपूरित,      आँगन ,
है     सम्पूर्ण   ,  तराई   -  भाबर /

                          पावन  -   पर्यावरण ,  प्रखंड ,                      
                          उज्ज्वल, उन्नत, उत्तराखण्ड /

सर्व-धर्म  -  समुदाय  ,   निवासी ,
शौर्य , सत्य  , शुचिता  स्वशासी /
मिल कर  सभी  प्रेम  से   रहते  ,
मूल  -  निवासी   और    प्रवासी /

                        भ्रात्र- भाव - भव भूमि अखण्ड 
                          उज्ज्वल, उन्नत, उत्तराखण्ड /  



Saturday, May 14, 2011

प्रजातन्त्र पटरी पर लाओ 
राष्ट्रपिताजी आप स्वर्ग में, 
परियों के संग खेल रहे हैं /
इधर आप के चेले-चांटे,
लाखों अरबों पेल रहे हैं /

`दरिद्रदेवता `कहा जिन्हें था,
जीवन अपना ठेल रहे हैं /
फटी लंगोटी तन पर लेकर,
मंहगाई को झेल रहे हैं /

भारत से सम्बन्धित बापू,
गणित तुम्हारा सही नहीं था /
कुछ दिन रहता सैन्यतन्त्र में,
प्रजातन्त्र के लिए नहीं था /

नियमों के पालन की आदत ,
खाद बना कर डाली जाती /
फिर नेता की फसल उगा कर,
प्रजातन्त्र में डाली जाती /

आज सभी को आज़ादी है,
लुटती फिरती जनता सारी /
मक्खन खाते नेता-अफसर ,
छाछ न पाती किस्मतमारी /

मंहगाई से त्रस्त सभी हैं,
गायब माल नहीं दीखता है /
दाल बिक रही सौ की के जी ,
आता तीस रु .बिकता है /

आलू बीस रु . तक बिक कर,
अब नीचे कुछ आ पाया है /
प्याज़ बिक गयी इतनी मंहगी,
तड़का तक न लग पाया है /

बड़ी कम्पनी माल घटा कर,
कीमत पूरी ले लेती है /
अधिकारी ध्रतराष्ट्र बनाकर,
कुछ टुकड़े उनको देती है /

कर्ज उठा कर नोट छापते,
यह सब जेबों में आता है /
पैसा ज्यादा,माल हुआ कम,
मूल्य एकदम बढ़ जाता है /

अर्थशास्त्री पी.एम्. अपने,
इतना फंडा समझ न पाते /
एम् एन सी को भारत ला कर,
नव विकास की दरें दिखाते /

धीरे-धीरे देश सिमट कर,
बंधन में इनके आ जाता /
भारत माँ को बंधक रख कर,
नेता कोई शर्म न खाता /

बेच रहे हैं देश कुतर कर,
अपनी सत्ता कायम रखने /
धर्म-जाति में नफरत डालें,
मन में दूरी कायम करने /

राष्ट्रपिता अब लाठी लेकर,
तुम भारत वापस आ जाओ /
ठोक बजा नेता-अफसर ,
प्रजातन्त्र पटरी पर लाओ /


Monday, May 9, 2011

शिकायत है बहुत छोटी, हमें करना नहीं आता /
लगीं हैं टोंटियाँ घर में, मगर पानी नहीं  आता /
यूँ कहने को मेरे घर  में, टंगे हैं बल्ब दर्जन भर,
बने शो पीस रहते हैं , कभी पावर नहीं आता /
लगे हैं सैकड़ों स्वच्छक ,शहर भर की सफाई को,
ये दीगर बात है अपनी, गली में वो नहीं आता /
है हर खम्बे पे एक हंडा, बड़ा सा रौशनी करने,
बिचारा क्या करे उसको, कभी जलना नहीं आता /
ये लगता है कि सब अंधे ,भरे हैं इन विभागों में,
बिना` पकड़े हुए लकड़ी`, इन्हें चलना नहीं आता /
सिखाया है इन्हें जनता , रियाया  `राज`इनकी है,
उसे मिल जाये कुछ सुविधा, इन्हें करना नहीं आता /


दूरबीनों को उठा कर, कोना-कोना देख लो /
कर दिया इंसाफ हम ने , कितना बौना देख लो /
हो गया दायर तो फिर, तारीख बरसों तक नहीं , 
क्या जरूरी केस का तुम, खत्म होना देख लो /
पीडिता से साजिशन, करके कुछ उलटे सवाल,
एक व्यभिचारी  सज़ा से,  दूर होना देख लो /
सत्य की लेकर शपथ, आधार है हर झूंठ का,
सत्य-मन्दिर में असत का,मुख घिनौना देख लो /
कत्ल चौराहे पे सब के, सामने होता है पर,
न्याय को निर्जल नदी में, जा डुबोना देख लो /
ये कहा है `राज `सबने,`अंत अति का एक दिन`,
क्या पता तुम ये कहावत, सत्य होना देख लो /