Saturday, May 14, 2011

प्रजातन्त्र पटरी पर लाओ 
राष्ट्रपिताजी आप स्वर्ग में, 
परियों के संग खेल रहे हैं /
इधर आप के चेले-चांटे,
लाखों अरबों पेल रहे हैं /

`दरिद्रदेवता `कहा जिन्हें था,
जीवन अपना ठेल रहे हैं /
फटी लंगोटी तन पर लेकर,
मंहगाई को झेल रहे हैं /

भारत से सम्बन्धित बापू,
गणित तुम्हारा सही नहीं था /
कुछ दिन रहता सैन्यतन्त्र में,
प्रजातन्त्र के लिए नहीं था /

नियमों के पालन की आदत ,
खाद बना कर डाली जाती /
फिर नेता की फसल उगा कर,
प्रजातन्त्र में डाली जाती /

आज सभी को आज़ादी है,
लुटती फिरती जनता सारी /
मक्खन खाते नेता-अफसर ,
छाछ न पाती किस्मतमारी /

मंहगाई से त्रस्त सभी हैं,
गायब माल नहीं दीखता है /
दाल बिक रही सौ की के जी ,
आता तीस रु .बिकता है /

आलू बीस रु . तक बिक कर,
अब नीचे कुछ आ पाया है /
प्याज़ बिक गयी इतनी मंहगी,
तड़का तक न लग पाया है /

बड़ी कम्पनी माल घटा कर,
कीमत पूरी ले लेती है /
अधिकारी ध्रतराष्ट्र बनाकर,
कुछ टुकड़े उनको देती है /

कर्ज उठा कर नोट छापते,
यह सब जेबों में आता है /
पैसा ज्यादा,माल हुआ कम,
मूल्य एकदम बढ़ जाता है /

अर्थशास्त्री पी.एम्. अपने,
इतना फंडा समझ न पाते /
एम् एन सी को भारत ला कर,
नव विकास की दरें दिखाते /

धीरे-धीरे देश सिमट कर,
बंधन में इनके आ जाता /
भारत माँ को बंधक रख कर,
नेता कोई शर्म न खाता /

बेच रहे हैं देश कुतर कर,
अपनी सत्ता कायम रखने /
धर्म-जाति में नफरत डालें,
मन में दूरी कायम करने /

राष्ट्रपिता अब लाठी लेकर,
तुम भारत वापस आ जाओ /
ठोक बजा नेता-अफसर ,
प्रजातन्त्र पटरी पर लाओ /


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