Saturday, June 18, 2011

ghurega aur ko

                         घूरेगा और को 
                                    - राज सक्सेना
गलती करेगा और फिर, घूरेगा और को |
क्या हो गया इंसानियत के,अबके दौर को |
हमने चुना देगा हमें, कुछ दिन तो रोटियां,
नेता चुरा के खा गया, हम सब के कौर को |
डेटिंग पे जा रही हैं , दादी की उम्र जिनकी,
घुन लग गया है दोस्त , जवानी के तौर को |
नन्हीं सी उम्र है मगर , दो तीन फ्लर्ट कर ,
दिल्ली में हुस्न बाँट कर, चलदी लहौर को |
टीचर की जात देखिये, शिष्यों से पी शराब,
शिष्या से दुष्ट चाहता, मन के कुछ और को |
साहब दुकान पर हैं, घर में धमाल-इ-मौज,
तन्हाइयों में कोसते, फ्रीडम के दौर को |
लिव इन रिलेशनों से, बढती है शान अब ,
मैरिज की क्या जरूरत, फसने दो और को |
शादी बिना हों बच्चे, इज्जत की बात है,
काजी बने हो`राज` क्यों, चलने दो दौर को |

 -धन वर्षा,हनुमान मन्दिर,
 खटीमा-262308 (उ.ख.)
मो- 09410718777

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