सदके लपेट के
- राज सक्सेना
बाहर तो आके देखिये, अब अपने गेट के |
दर पे खड़े हैं लोग सब, सपने लपेट के |
जी जान से लगे थे ,भारत में हो विकास ,
लो आ गया विकास भी, चेहरे लपेट के |
यूँ तो नहीं आते कभी, संसद के कक्ष में,
विश्वासमत में आ गये, कुर्सी पे लेट के |
सारे जहाँ से अच्छा, भारत महान है |
रिश्वत का है समन्दर, `पी ले` समेट के |
कह दो विदेशियों से , आयें सभी यहाँ,
बाहर खड़े हैं खोलकर, हम अपने गेट के |
बुजदिल हैं `राज` हम तो, धमकी तो दे हमें,
दुश्मन को देश दे दें, सदके लपेट के |
- धन वर्षा,हनुमान मन्दिर,खटीमा-262308 (उ.ख.)
- मो- 09410718777
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- मो- 09410718777
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