नेता जनाब का
- राज सक्सेना
किस्सा सुनाएँ आपको, नेता जनाब का |
रखते हैं साथ फूल एक,जिन्दा गुलाब का |
यूँ तो कमी नहीं है कहीं,इन जनाब की,
भारत में फूल फल रहा,धंधा जनाब का |
माँ-बाप तो शरीफ थे, गडबड हुई कहाँ |
पैदा हुआ जो शातिर-ए-आजम अगर वहाँ |
पैदा किसी गली में ये, दर्जन से कम नहीं,
हर घर में तीन-तीन, ये पैदा यहाँ-वहाँ |
आते ही माँ के पेट से , हैराँ उसे करे |
पैदा करे तो दाई की, नाकों में दम करे |
हिल जाये देश पूर्ण , सुनामी तुफान से,
धरती पे आके इनके, मुबारक कदम पड़े |
बोला जो पहला शब्द वो , साला इसे मिला |
गाली का हरेक साल में, बढ़ता है सिलसिला |
रो-रो के पूरे शहर को, सर पर उठा लिया ,
इसने जो चाहा वो अगर, फौरन नहीं मिला |
होते ही पांच वर्ष का, दादा बना बड़ा |
हर आमो-खास इसने,जमकर दिए लड़ा |
फिर देखता है दूर से, जंगो -जहद को ये,
खुद ही सुलह के वास्ते, हो जाय ये खड़
शर्तों पे अपनी मेल कराता है , ये जनाब |
दोनों ही पक्ष अपना समझते , इसे जनाब |
कोई खड़ा हो सामने , किसकी मजाल है,
यूँ तिकडमों से क्षेत्र का, लीडर बने जनाब |
मोहल्ले के बाद शहर को, फिर एरिया पकड़ |
पंजे में अपने शातिरों को,ठीक से जकड़ |
जो सामने को आये तो, हिकमत से काम ले,
पहले ही दांव में वो जाता है फिर उखड़ |
बन के नवाब फिर ये , चलाये हुकूमतें |
झुक जाएँ इसके सामने , जुर्मों की ताकतें |
करके महीना फिक्स ये, उनको अभय करे,
हिस्सा पुलिस का बाँध कर,करता हुकूमतें |
- धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
खटीमा- 262308(उत्तराखंड)
मो- 09410718777
मो- 09410718777
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