Sunday, June 26, 2011

neta jnab ka

              नेता जनाब का 
                               - राज सक्सेना 
किस्सा सुनाएँ आपको, नेता जनाब का |
रखते हैं साथ फूल एक,जिन्दा गुलाब का |
यूँ तो कमी नहीं है कहीं,इन जनाब की,
भारत में फूल फल रहा,धंधा जनाब का |

माँ-बाप तो शरीफ थे, गडबड हुई कहाँ |
पैदा हुआ जो शातिर-ए-आजम अगर वहाँ |
पैदा किसी गली में ये, दर्जन से कम नहीं,
हर घर में तीन-तीन, ये पैदा यहाँ-वहाँ |

आते ही माँ के पेट से ,  हैराँ    उसे     करे |
पैदा करे तो दाई की, नाकों में दम    करे |
हिल जाये देश पूर्ण , सुनामी तुफान  से,
धरती पे आके इनके, मुबारक कदम पड़े |

बोला जो पहला शब्द वो , साला इसे मिला |
गाली का हरेक साल में, बढ़ता है सिलसिला |
रो-रो के पूरे  शहर को, सर पर उठा लिया ,
इसने जो चाहा वो अगर, फौरन  नहीं मिला |

होते ही पांच वर्ष का,   दादा   बना      बड़ा |
हर आमो-खास इसने,जमकर दिए    लड़ा |
फिर देखता है दूर से, जंगो -जहद को  ये,
खुद ही सुलह के वास्ते, हो जाय ये     खड़
शर्तों पे अपनी मेल कराता है ,   ये जनाब |
दोनों ही पक्ष अपना समझते ,  इसे जनाब |
कोई खड़ा हो सामने , किसकी मजाल  है,
यूँ तिकडमों से क्षेत्र का, लीडर बने  जनाब |

मोहल्ले के बाद शहर को, फिर एरिया पकड़ |
पंजे में अपने शातिरों को,ठीक से      जकड़  |
जो सामने को आये तो, हिकमत से काम ले,
पहले ही दांव में वो जाता है फिर       उखड़   |

बन के नवाब फिर ये , चलाये       हुकूमतें |
झुक जाएँ इसके सामने ,  जुर्मों की   ताकतें |
करके महीना फिक्स ये, उनको अभय  करे,
हिस्सा पुलिस का बाँध कर,करता हुकूमतें  |

                                  - धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
                                    खटीमा- 262308(उत्तराखंड)
                                    मो- 09410718777

No comments:

Post a Comment