पड़ जाता है गले कभी
- राज सक्सेना
हास्य-व्यंग के गीत सुनाना, पड़ जाता है गले कभी |
कवियों पर पैरोडी लिख लाना, पड़ जाता है गले कभी |
कविवर जी से हाथ मिलाया, एक अंगूठी गायब है ,
मित्रों से भी हाथ मिलाना, पड़ जाता है गले कभी |
कविता को गम्भीर बना कर,मत पढना सम्मेलन में,
भैंस वती को बीन सुनाना, पड़ जाता है गले कभी |
फूट गया सर संचालक जी का, कविगण हास्पिटल में हैं,
कवियों को दारू पिलवाना, पड़ जाता है गले कभी |
डांट सहन न की बी बी की, उल्टा उसको डांट दिया,
भूल हैसियत रौब जमाना, पड़ जाता है गले कभी |
थाल,कटोरी,चम्मच सारे, बाद डिनर के नहीं मिले,
कवि को एक डिनर खिलवाना,पड़ जाता है गले कभी |
डर के मारे सोते-सोते, उठ जाते हैं लालू जी,
बेजुबान का चारा खाना, पड़ जाता है गले कभी |
आंख लड़ाई कल्लो जी से, बिनफेरे घर बैठ गयीं,
`राज`आजकल आँख लड़ाना,पड़ जाता है गले कभी |
- धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-262308
मो- 09410718777
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