Saturday, June 25, 2011

pad jata hai gle kabhi

                             पड़ जाता है  गले कभी  
                                                  - राज सक्सेना 
हास्य-व्यंग के गीत सुनाना, पड़ जाता है गले कभी  |
कवियों पर पैरोडी लिख लाना, पड़ जाता है गले कभी |
कविवर जी से हाथ मिलाया, एक अंगूठी गायब है ,
मित्रों से भी हाथ मिलाना, पड़ जाता है गले कभी |
कविता को गम्भीर बना कर,मत पढना सम्मेलन में,
भैंस वती को बीन सुनाना, पड़ जाता है गले कभी |
फूट गया सर संचालक जी का, कविगण हास्पिटल में हैं,
कवियों को दारू पिलवाना, पड़ जाता है गले कभी |
डांट सहन न की बी बी  की, उल्टा उसको डांट दिया,
भूल हैसियत रौब जमाना, पड़ जाता है गले कभी |
थाल,कटोरी,चम्मच सारे, बाद डिनर के नहीं मिले,
कवि को एक डिनर खिलवाना,पड़ जाता है गले कभी |
डर के मारे सोते-सोते, उठ  जाते हैं लालू जी,
बेजुबान का चारा खाना, पड़ जाता है गले कभी |
आंख लड़ाई कल्लो जी से, बिनफेरे घर बैठ गयीं,
`राज`आजकल आँख लड़ाना,पड़ जाता है गले कभी |
                                 - धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
                             खटीमा-262308
                             मो- 09410718777

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